kolkata Hospital Case: क्या इस देश में सुरक्षित हैं महिलाएं?
कोलकाता के आरजी हॉस्पिटल में एक साल की ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए जघन्य अपराध ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना के बाद वेस्ट बंगाल सहित देश के कई इलाकों में भारी प्रोटेस्ट देखने को मिला, जिसमें डॉक्टर्स ने भी स्ट्राइक की। प्रोटेस्टर्स के ऊपर कई गुंडों ने हमला किया और अस्पताल में तोड़फोड़ की घटनाएं भी हुईं। पुलिस ने अब तक कई लोगों को गिरफ्तार किया है। सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे हैं ममता बनर्जी के खिलाफ, जो वेस्ट बंगाल की चीफ मिनिस्टर के साथ-साथ होम मिनिस्टर और हेल्थ मिनिस्टर भी हैं। इस घटना के बाद ममता बनर्जी ने एक प्रोटेस्ट रैली भी निकाली, लेकिन सवाल यह है कि वे किसके खिलाफ रैली कर रही थीं, यह कोई समझ नहीं पाया।
घटना का मुख्य आरोपी:
इस घटना का मुख्य आरोपी संजय रॉय है, जो वेस्ट बंगाल पुलिस में एक सिविक वॉलेन्टीयर था। पास्ट में उसकी तीन शादियाँ डोमेस्टिक वायलेंस के चलते टूट चुकी थीं। पहला सवाल यह उठता है कि किस प्रकार के व्यक्ति को सिविक वॉलेन्टीयर के रूप में भर्ती किया गया, खासकर जब उसकी डोमेस्टिक वायलेंस की हिस्ट्री पहले से ही ज्ञात थी। इसके खिलाफ पहले ही पुलिस एक्शन लिया जाना चाहिए था।
पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई:
सीसीटीवी फुटेज, ब्लूटूथ डिवाइस और डीएनए सैंपल्स के आधार पर पुलिस ने संजय रॉय को गिरफ्तार किया। उसने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया है। लेकिन दूसरा सवाल यह उठता है कि अस्पताल में उसके पास सभी डिपार्टमेंट्स का एक्सेस कैसे था? घटना के कुछ दिन बाद इस केस को सीबीआई को ट्रांसफर करने की डिमांड उठी। सीएम ममता बनर्जी ने इसे भी श्रग ऑफ करने की कोशिश की, यह कहते हुए कि उन्हें इससे कोई समस्या नहीं है। अगर अगले कुछ दिनों में पुलिस कुछ नहीं कर पाई, तो वे खुद ही इस केस को सीबीआई को ट्रांसफर करने वाली हैं।
कोलकाता हाई कोर्ट का निर्णय:
कोलकाता हाई कोर्ट ने पुलिस की विश्वसनीयता की कमी के कारण मामले को सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि किसी केस को सीबीआई को सौंपे जाने की डिमांड स्टेट पुलिस में लोगों के भरोसे की कमी को दर्शाती है, जो होम मिनिस्टर और चीफ मिनिस्टर ममता बनर्जी के लिए एक फेलियर है।
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल का मामला:
यहां आता है हमारा तीसरा सवाल, आखिर किस तरह संदीप घोष जैसा व्यक्ति आरजी करर मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल बना हुआ था। इस पर आरोप है कि उसने बहुत ही करप्ट तरीके से इस मेडिकल कॉलेज को माफिया की तरह चलाया। लेकिन बार-बार उसका ट्रांसफर रुक जाता था। अंदेशा है कि उसके टीएमसी के करीबी होने की वजह से ऐसा हुआ।
संदीप घोष पर लगे आरोप:
इस केस में भी संदीप घोष पर संगीन आरोप लगे कि उसने मामले को दबाने की कोशिश की और इसे आत्महत्या दिखाने की कोशिश की। विक्टिम के पेरेंट्स को कई घंटों तक विक्टिम की बॉडी नहीं दिखाई गई और एफआईआर लिखने में भी देरी की गई। इन्हें जब वहां से हटाया गया, तब भी इन्हें कलकत्ता नेशनल कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया गया। यह सोचने वाली बात है कि जो व्यक्ति एक जगह पर होने के लायक नहीं है, उसे दूसरी जगह ट्रांसफर करने का क्या सेंस बनता है?
हाई कोर्ट की कार्रवाई:
कलकत्ता हाई कोर्ट ने इसी नॉनसेंस को पॉइंट आउट करते हुए संदीप घोष को एक्सटेंडेड लीव ऑफ एब्सेंट पर भेज दिया। संदीप पर लगे करप्शन चार्जेस की जांच के लिए वेस्ट बंगाल सरकार ने एक एसआईटी बनाई है, जिसे एक महीने में अपनी रिपोर्ट सबमिट करने को कहा गया है। सीबीआई इस केस में अब तक चार बार संदीप घोष को इंटेरोगेट कर चुकी है।
देशभर में विरोध की लहर:
देशभर में इस केस पर लोगों ने आवाज उठाई। वेस्ट बंगाल सरकार ने वर्क प्लेसेस में औरतों की सेफ्टी के लिए कुछ इनिशिएटिव अनाउंस किए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुओ मोटो कॉग्निसेंस ली और कुछ स्ट्रॉन्ग स्टेटमेंट्स दिए, जैसे कि संविधान में दी गई इक्वलिटी का क्या ही अर्थ है, अगर औरतें अपने वर्कप्लेस में भी सुरक्षित नहीं हैं और उन्हें बेसिक इक्वलिटी से वंचित किया जाता है? लेवल चेंजेस लाने के लिए देश अब एक और रेप होने का इंतजार नहीं कर सकता।
निरंतर अपराधों की घटनाएं:
कुछ दिन पहले मैंने इस केस पर एक पोस्ट लिखी थी और आपसे कहा था कि उम्मीद है, आपका इंटरेस्ट लूज न हो जाए। क्या देश में हो रहे हर रोज के करीब रेप केसेस रुक गए होंगे? बिल्कुल भी नहीं। कोलकाता की खबर के बाद उत्तराखंड से यह खबर आई कि एक नर्स के साथ भी ऐसा ही हादसा हुआ। इस केस में बस ड्राइवर और बस कंडक्टर शामिल थे। बेंगलुरु में एक साल की कॉलेज स्टूडेंट के साथ भी ऐसा ही हुआ जब वह पार्टी से घर जा रही थी। महाराष्ट्र के बदलापुर इलाके में एक स्कूल के क्लीनिंग स्टाफ द्वारा तीन और साल की दो छोटी लड़कियों का सेक्सुअल एब्यूज हुआ।
रेप्स की रिपोर्टिंग और प्रोटेस्ट की स्थिति:
पेरेंट्स ने रेलवे स्टेशन पर ब्लॉकेड किया। इन सारी खबरों को देखकर आपको लगेगा कि पिछले दिनों में कुछ ज्यादा ही रेप्स होने लगे हैं, लेकिन यह बात सच नहीं है। रेप्स हर रोज हो रहे हैं, लेकिन रिपोर्टिंग हर रोज नहीं हो रही। आउटरेज और प्रोटेस्ट भी हर रोज नहीं हो रहे। देश में लार्ज स्केल प्रोटेस्ट सबसे पहले निर्भया केस के बाद हुए थे। फिर हैदराबाद में साल की एक वेटरनरी डॉक्टर का रेप और मर्डर हुआ, तब भी आउटरेज हुआ।
बढ़ते रेप केस और उनकी गंभीरता:
अगर हम बढ़ती हुई पॉपुलेशन के साथ-साथ प्रोपोर्शन भी देखें तो उसमें भी हमें उछाल देखने को मिलता है। एनसीआरबी के लेटेस्ट फिगर्स के अनुसार, 2021 में 31,677 रेप केस रिपोर्ट हुए, यानी हर दिन 86 रेप केसेस। इसका मतलब साफ है कि सिचुएशन बदतर होती जा रही है और रेप के रूट कॉसेस भी बने हुए हैं और बढ़ते जा रहे हैं। इस वजह से मुझे एब्सर्डिटी महसूस होती है। एक हफ्ते प्रोटेस्ट होना ठीक है, लेकिन साल के बाकी दिनों ऐसा व्यवहार करना जैसे कि सब ठीक है, एब्सर्ड है।
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समाज की भूमिका और जरूरत:
क्या होना चाहिए सिचुएशन में सुधार के लिए? क्या आप लोग इस अनकंफर्टबल डिस्कशन के लिए तैयार हैं? यह डिस्कशन अनकंफर्टबल होगा क्योंकि आप देखेंगे कि आप में से बहुत से लोग किसी न किसी तरह इस प्रॉब्लम का हिस्सा हैं। क्या आप इसे अनोलेट करेंगे? मुझे नहीं पता।
वीर दास और अन्य के विचार:
वीर दास ने कहा था कि हम टू इंडिया में जी रहे हैं। एक तरफ हमारे देश में औरतों की पूजा होती है और दूसरी तरफ उनके साथ ऐसे अपराध होते हैं। बात गलत तो नहीं थी, लेकिन लोगों को बुरा लग गया। इसी तरह निर्भया केस के बाद लेस्ली एडविन की एक डॉक्यूमेंट्री आई थी “इंडिया डॉटर”। यह इतनी पावरफुल और थॉट प्रवोकिंग डॉक्यूमेंट्री थी कि देश के हर स्कूल में इसे थ क्लास के बच्चों को दिखाया जाना चाहिए था। लेकिन हमारे देश में लोग अनकंफर्टबल हुए और इस डॉक्यूमेंट्री पर बैन लगा दिया गया। कहा गया कि इससे इंडिया की इंटरनेशनल इमेज खराब हो रही है।
रेप के खिलाफ समाज की जिम्मेदारी:
आज की डिस्कशन के बाद भी आपको ऐसा ही अनकंफर्टबल लग सकता है, लेकिन अगर आप जेनुइनली कंसर्न हैं इस मुद्दे को लेकर, तो वीडियो को आखिर तक देखना और जो स्टेप्स हम डिस्कस करेंगे, उन पर ध्यान देना जरूरी है।
रेप के खिलाफ सामान्य सवाल:
शुरुआत करते हैं एक बड़े सिंपल से सवाल से: क्या रेप गलत है? आप कहेंगे कि यह बेहूदा सवाल है। ओबवियसली, रेप गलत है। लेकिन जब हम अपने आस-पास के समाज के एटीट्यूड को देखते हैं, तो कुछ और ही तस्वीर नजर आती है।
सोसाइटी का रुख:
हर कोई कहता तो है कि रेप गलत है, लेकिन कंडीशंस अपनी अप्लाई करता है। लड़कियों को सलाह दी जाती है कि वे कम कपड़े पहनें, शराब न पिएं, लड़कों के साथ पार्टी न करें, और अकेले बाहर न जाएं। यह समाज की सोच को दर्शाता है।
समाज की सोच और पीड़िताओं पर आरोप:
समाज अक्सर पीड़िताओं पर ही सवाल खड़े करता है, जैसे कि अगर उसने छोटे कपड़े पहने थे, या शराब पी थी, तो यह सब उसकी गलती है। लड़कियों से कहा जाता है कि वे सुरक्षित रहें, घर जल्दी लौटें, और मर्दों से दूर रहें। लेकिन, असली समस्या यह है कि यह सोच अपराधियों को हौसला देती है और उन्हें यह एहसास कराती है कि उनके अपराधों का दोष पीड़िता पर डाला जा सकता है।
अपराधियों को मिलने वाली छूट:
अक्सर समाज, परिवार, और यहां तक कि कानून भी अपराधियों को सख्त सजा नहीं देता। बहुत से मामलों में आरोपी को जल्दी ही जमानत मिल जाती है और वह फिर से समाज में खुलेआम घूमता है। कई बार तो उन्हें समाज से समर्थन भी मिलता है, खासकर जब वे पावरफुल या इन्फ्लुएंशियल होते हैं। ऐसा लगता है कि अपराधियों को कोई डर नहीं है कि उन्हें उनके कृत्य के लिए कड़ी सजा मिलेगी।
लड़कों की परवरिश और समाज की जिम्मेदारी:
लड़कों की परवरिश में भी समाज की बड़ी भूमिका होती है। उन्हें बचपन से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि लड़कियों का सम्मान कैसे करें, और कि उनका शरीर सिर्फ उनका होता है। लेकिन, अक्सर परिवार और समाज लड़कों को यह सिखाने में नाकाम रहते हैं। यह जरूरी है कि हम अपने घरों में लड़कों को सही संस्कार दें, ताकि वे महिलाओं का सम्मान करना सीखें।
रेप की जड़ में मौजूद समस्या:
रेप की समस्या सिर्फ कानून व्यवस्था की नहीं है, यह समाज की मानसिकता की भी है। जब तक समाज में लड़कियों को उनकी वर्दी, उनके व्यवहार, या उनकी जीवनशैली के लिए दोषी ठहराया जाता रहेगा, तब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा। हमें यह समझने की जरूरत है कि किसी भी महिला के साथ ऐसा अपराध उसके कपड़ों, उसकी आदतों, या उसके किसी भी व्यवहार की वजह से नहीं, बल्कि अपराधी की बीमार मानसिकता की वजह से होता है।
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समाज में बदलाव की जरूरत:
समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। हमें यह समझना होगा कि रेप एक अपराध है और इसका दोष सिर्फ और सिर्फ अपराधी पर ही होना चाहिए। पीड़िताओं को उनके कपड़ों, उनकी आदतों, या उनकी लाइफस्टाइल के लिए दोषी ठहराना बंद करना होगा। इसके साथ ही, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अपराधियों को सख्त से सख्त सजा मिले, ताकि कोई भी व्यक्ति ऐसा अपराध करने से पहले सौ बार सोचे।
सरकार और कानून की भूमिका:
सरकार और कानून की भी जिम्मेदारी है कि वे रेप के मामलों में तेजी से कार्रवाई करें और दोषियों को सख्त सजा दिलवाएं। इसके साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कानून व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अपने पद का गलत इस्तेमाल न कर सके। यदि कोई अधिकारी या पावरफुल व्यक्ति ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करता है, तो उसे भी सख्त सजा मिलनी चाहिए।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम:
महिलाओं की सुरक्षा के लिए हमें कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, हमें समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता की भावना को बढ़ावा देना होगा। इसके साथ ही, हमें लड़कियों और महिलाओं को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि वे खुद की सुरक्षा कर सकें। इसके अलावा, सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए हमें अधिक से अधिक सीसीटीवी कैमरे और पुलिस पेट्रोलिंग की व्यवस्था करनी चाहिए।
शिक्षा और जागरूकता:
रेप के खिलाफ लड़ाई में शिक्षा और जागरूकता का भी अहम रोल है। हमें स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को यौन शोषण, महिलाओं के अधिकारों, और महिलाओं के प्रति सम्मान की शिक्षा देनी चाहिए। इसके साथ ही, समाज में जागरूकता फैलाने के लिए हमें अभियान चलाने होंगे, जिसमें लोगों को बताया जाए कि रेप एक गंभीर अपराध है और इसका दोषी सिर्फ अपराधी ही होता है।
मीडिया और समाज की भूमिका:
मीडिया और समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। मीडिया को रेप के मामलों को संवेदनशीलता से रिपोर्ट करना चाहिए और पीड़िताओं की पहचान उजागर नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही, समाज को पीड़िताओं के साथ खड़ा होना चाहिए और उन्हें न्याय दिलाने के लिए हर संभव मदद करनी चाहिए।
समाज का सहयोग और समर्थन:
अंत में, समाज को यह समझना होगा कि यह लड़ाई केवल महिलाओं की नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत की है। हमें एकजुट होकर इस बुराई का सामना करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे समाज में महिलाओं के साथ कोई अन्याय न हो। समाज का हर व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या महिला, इस लड़ाई में शामिल होकर एक सुरक्षित और सम्मानजनक समाज का निर्माण कर सकता है।
रेप के खिलाफ लड़ाई में समाज, कानून, और सरकार को मिलकर काम करना होगा। हमें महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, अपराधियों को कड़ी सजा देनी होगी, और समाज में जागरूकता फैलानी होगी। अगर हम सब मिलकर इस दिशा में काम करें, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश में महिलाएं बिना डर के जी सकेंगी और समाज में सम्मान के साथ अपना जीवन बिता सकेंगी।
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