रतन टाटा (Ratan Tata) ने फोर्ड मोटर्स (Ford Motors) को सिखाया सबक, जानें पूरी कहानी
Ratan Tata का सबक: फोर्ड मोटर्स को मिली नसीहत
एक महीने पहले, कार मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री से एक बड़ी खबर आई। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने अमेरिका की यात्रा के दौरान फोर्ड मोटर्स की लीडरशिप टीम से मुलाकात की। यह वही फोर्ड मोटर्स है जिसने तीन साल पहले, कोरोना महामारी के समय, भारत से अपने कारोबार को समेटने का फैसला किया था। अब हालात बदल चुके थे और फोर्ड अपना चेन्नई प्लांट फिर से शुरू करना चाहती थी, ताकि वहां से कारों का उत्पादन और एक्सपोर्ट हो सके।
जब फोर्ड ने पहले भारत से अपना कारोबार समेटा था, तब उन्हें लगभग 2 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था। कोई भी कंपनी इतनी बड़ी वित्तीय हानि को दोहराना नहीं चाहेगी, लेकिन किसी ने सोचा नहीं था कि फोर्ड की स्थिति इतनी जल्दी बिगड़ जाएगी। इस फैसले का प्रभाव सिर्फ कंपनी पर ही नहीं, बल्कि उन हजारों कर्मचारियों और उद्योगों पर भी पड़ा, जो इससे जुड़े थे।
रतन टाटा की समझ
ऐसे में एक व्यक्ति था जिसने इस परिस्थिति को पहले ही भांप लिया था—रतन टाटा। एक समय फोर्ड ने उन्हें अपने मुख्यालय में बुलाकर अपमानित करने की कोशिश की थी, लेकिन रतन टाटा ने तब भी संयम बनाए रखा और एक ऐसा बिजनेस मॉडल खड़ा किया जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बना।
रतन टाटा ने जिस बिजनेस एथिक्स और कल्चर को स्थापित किया, वह आज भी भारतीय उद्योग जगत में प्रेरणा का स्रोत है। फोर्ड की जैसी परिस्थितियों में उनकी सोच का फायदा कैसे मिला, यह अब साफ नजर आता है।
ट्रक से कार तक का सफर
रतन टाटा ने 1991 में टाटा समूह की कमान संभाली। उस वक्त टाटा मोटर्स मुख्य रूप से ट्रक निर्माण के लिए जानी जाती थी, लेकिन रतन टाटा का सपना था कि भारत में बनी एक ऐसी कार हो, जिसे पूरी दुनिया पहचाने। इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और 1998 में टाटा इंडिका को लॉन्च किया।
टाटा इंडिका भारत की पहली कार थी जिसे पूरी तरह भारतीय कंपनी द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया था। लेकिन जब यह बाजार में आई, तो शुरू में ग्राहकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। इसके कई तकनीकी मुद्दे सामने आए, खासकर दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों की सड़कों पर, जहां इसकी ब्रेकडाउन की शिकायतें बढ़ गईं।
हार मानने से इनकार
1999 में, टाटा ग्रुप ने कार बिजनेस को बंद करने का विचार किया। रतन टाटा इस असफलता से निराश थे, लेकिन उन्होंने हार मानने से इनकार कर दिया। इसी दौरान उन्होंने अपने कार कारोबार को बेचने के लिए फोर्ड मोटर्स से संपर्क किया।
फोर्ड के मुख्यालय में अपमान
रतन टाटा और उनकी टीम अमेरिका गए, जहां फोर्ड के मुख्यालय में उनकी मीटिंग हुई। उस वक्त, फोर्ड के अधिकारी रतन टाटा को यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि उन्होंने टाटा इंडिका के निर्माण में बहुत बड़ी गलती की थी। एक अधिकारी ने रतन टाटा से कहा, “अगर आपको कार बिजनेस समझ नहीं आता, तो इसे क्यों शुरू किया?”
यह अपमानजनक टिप्पणी रतन टाटा के लिए एक बड़ा झटका थी, लेकिन उन्होंने शांति से इस अपमान को झेला और भारत लौट आए।
टाटा की वापसी
2008 में हालात ने करवट ली। वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते फोर्ड की हालत खराब हो गई। इस संकट की वजह से उन्हें अपने प्रतिष्ठित कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को बेचने की नौबत आ गई। और उसी रतन टाटा ने, जिन्हें कभी अपमानित किया गया था, जगुआर लैंड रोवर को खरीदने के लिए आगे आए।
आज जगुआर लैंड रोवर टाटा मोटर्स के स्वामित्व में है और यह टाटा ग्रुप की सबसे सफल इकाइयों में से एक है। यह कहानी एक महत्वपूर्ण सीख देती है—व्यवसाय में धैर्य और आत्मविश्वास की अहमियत क्या होती है।
चेन्नई प्लांट की वापसी
अब, तीन साल बाद, फोर्ड फिर से अपने चेन्नई प्लांट को शुरू करने की योजना बना रही है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि भारत में कार मैन्युफैक्चरिंग का भविष्य उज्जवल है और रतन टाटा के बिजनेस सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।
FAQ:
Q1: फोर्ड मोटर्स ने भारत में अपना प्लांट क्यों बंद किया था?
A: 2020 में फोर्ड ने भारत में अपना प्लांट बंद कर दिया था क्योंकि उन्हें भारी वित्तीय नुकसान हो रहा था। यह फैसला महामारी के दौरान लिया गया था।
Q2: रतन टाटा और फोर्ड मोटर्स के बीच क्या हुआ था?
A: 1999 में रतन टाटा को फोर्ड मोटर्स के मुख्यालय में अपमानित किया गया था, लेकिन बाद में 2008 में रतन टाटा ने फोर्ड के संकटग्रस्त ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को खरीदा।
Q3: फोर्ड मोटर्स अब भारत में क्यों लौट रही है?
A: फोर्ड अब फिर से भारत में अपने चेन्नई प्लांट को शुरू करना चाहती है क्योंकि कंपनी को दोबारा भारत के बाजार में संभावनाएं नजर आ रही हैं।
ब्यूरो रिपोर्ट, टॉकआज मीडिया (Talkaaj Media)
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