शिरडी साईं बाबा (Shirdi Sai Baba) का अंतिम संस्कार कैसे हुआ: हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच विवाद

Shirdi Sai Baba

शिरडी साईं बाबा (Shirdi Sai Baba) का अंतिम संस्कार कैसे हुआ: हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच विवाद

शिरडी के महान संत साईं बाबा के अंतिम संस्कार को लेकर हमेशा से एक बड़ा सवाल रहा है—आखिर उनके अंतिम संस्कार में कौन-सी परंपरा का पालन किया गया? इस विषय पर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच भारी मतभेद था। बाबा के भक्तों में दोनों ही धर्मों के लोग शामिल थे। हिंदू समुदाय बाबा को भगवान का अवतार मानता था और इसलिए उनका अंतिम संस्कार अपने धार्मिक रीति-रिवाजों से करना चाहता था। दूसरी ओर, मुस्लिम समुदाय बाबा को सूफी संत और मौलवी के रूप में देखता था और इसीलिए उनकी इस्लामी परंपराओं के तहत अंतिम क्रियाएं करना चाहता था। यह मतभेद इतना बढ़ गया कि अंततः वोटिंग करवानी पड़ी ताकि यह तय हो सके कि बाबा की समाधि कहां और कैसे बनेगी।


Shirdi Sai Baba की पहचान और विवाद

साईं बाबा का जन्म और उनकी पहचान आज भी विवादित विषय हैं। उनके जन्मस्थल और जन्मतिथि पर मतभेद हैं। कुछ लोग मानते हैं कि उनका जन्म 1836 में हुआ, जबकि कुछ के अनुसार उनका जन्म 1838 में हुआ था। हालांकि बाबा ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा शिरडी में बिताया, जहां उन्होंने अपने उपदेशों और करुणा से लाखों लोगों का दिल जीता। बाबा ने जीवन भर जाति, धर्म और समुदाय से परे सभी के साथ समानता और प्रेम का व्यवहार किया।

18 अक्टूबर 1918 को बाबा ने अपने जीवन का अंतिम सांस लिया। लेकिन उनके निधन के बाद भी एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया—उनके अंतिम संस्कार को किस परंपरा से किया जाएगा। इस विवाद की शुरुआत उनके अनुयायियों के बीच मतभेद से हुई, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय शामिल थे।


Shirdi Sai Baba के आखिरी दिन: बीमारी और संकेत

डॉ. सी.बी. सतपति ने अपनी पुस्तक ‘शिरडी साईं बाबा: एन इन्स्पायरिंग लाइफ’ में बाबा के अंतिम दिनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। उनके अनुसार, बाबा को पहले ही इस बात का एहसास हो गया था कि उनका समय अब समाप्त होने वाला है। 28 सितंबर 1918 को बाबा को तेज बुखार हुआ, जो तीन दिनों तक बना रहा। इस दौरान उन्होंने भोजन और पानी छोड़ दिया, जिससे उनका शरीर बेहद कमजोर हो गया। बाबा ने अपने अनुयायियों से संकेतों के माध्यम से कहा कि अब वह महासमाधि लेने वाले हैं।


निधन से कुछ घंटे पहले की घटनाएं

साईं बाबा के जीवन के अंतिम दिन की घटनाओं का उल्लेख उस समय प्रकाशित ‘श्री सनथप्रभा’ मैगजीन में भी मिलता है। रिपोर्ट के अनुसार, बाबा ने अपनी नियमित दिनचर्या छोड़ दी थी, जिसमें वह रोज लेंडीबाग और चावड़ी जाया करते थे। 15 अक्टूबर 1918 को, उन्होंने द्वारकामाई में दोपहर की आरती के बाद अपने अनुयायियों को घर भेज दिया। उसी दिन लगभग पौने तीन बजे, बाबा अपनी गद्दी पर बैठे थे। उस समय उनके दो करीबी भक्त—बयाजी अप्पा कोटे पाटिल और लक्ष्मी बाई—वहां मौजूद थे। बाबा ने उनसे कहा कि उन्हें बूटीवाड़ा ले जाया जाए, जहां उन्होंने अपने अंतिम समय में शांति का अनुभव होने की उम्मीद जताई।


निधन से पहले बाबा ने दिए थे नौ सिक्के

डॉ. सतपति की पुस्तक के अनुसार, बाबा ने अपनी एक भक्त लक्ष्मी बाई को एक-एक रुपये के नौ सिक्के दिए। उन्होंने मराठी में कहा, “मुझे यहां अच्छा नहीं लग रहा है, मुझे बूटीवाड़ा ले चलो, शायद वहां बेहतर महसूस हो।” इसके बाद बाबा ने अप्पा कोटे पाटिल की गोद में सिर रखा और अंतिम सांस ली।

यह दिन दोनों धर्मों के लिए बेहद महत्वपूर्ण था—हिंदू पंचांग के अनुसार यह विजयादशमी का दिन था, जबकि इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक यह रमज़ान के नौवें दिन के साथ मेल खाता था।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Group Join Now
Google News Follow Me

Shirdi sai2 5c4cd6c046e0fb0001c0d9d2

बाबा की मौत के बाद हुआ बड़ा विवाद

बाबा के निधन की खबर तेजी से फैली, और हजारों अनुयायी शिरडी में इकट्ठा होने लगे। उनके भक्तों में हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे—हिंदू उन्हें भगवान का अवतार मानते थे, जबकि मुस्लिम उन्हें सूफी संत या मौलवी के रूप में पूजते थे। उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को लेकर दोनों समुदायों के बीच तनाव पैदा हो गया।

हिंदू समुदाय ने बाबा की समाधि बूटीवाड़ा में बनाने का प्रस्ताव रखा, क्योंकि बाबा ने स्वयं अपने अंतिम क्षणों में वहां ले जाने की इच्छा व्यक्त की थी। 15 अक्टूबर की शाम को, समाधि स्थल की खुदाई भी शुरू हो गई थी। लेकिन मुस्लिम समुदाय ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि अंतिम संस्कार इस्लामी परंपराओं के अनुसार होना चाहिए।


पुलिस और प्रशासन ने कैसे सुलझाया विवाद?

विवाद इतना बढ़ गया कि पुलिस को दखल देना पड़ा। रहाटा पुलिस स्टेशन के सब-इंस्पेक्टर ने मौके पर पहुंचकर बाबा की समाधि बूटीवाड़ा में बनाने के पक्ष में राय दी। हालांकि, इससे भी विवाद खत्म नहीं हुआ। इसके बाद शिरडी के मामलातदार ने सुझाव दिया कि हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच वोटिंग कराई जाए।

वोटिंग में हिंदू पक्ष ने जीत हासिल की, जहां उनके पक्ष में दोगुने वोट पड़े। इसके बाद भी मुस्लिम समुदाय पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुआ और मामला अहमदनगर के कलेक्टर के पास ले जाया गया। लेकिन अंततः, दोनों समुदायों के बीच समझौता हुआ, और बाबा की समाधि बूटीवाड़ा में ही बनाने का निर्णय लिया गया।


यह भी देखे | लड़की ने खोली पैंट और ई-रिक्शा वाले की कर दी पिटाई – Viral Video की सच्चाई ने सबको चौंकाया

समाधि और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया

विवाद के शांत होने के बाद, बाबा के पार्थिव शरीर को बूटीवाड़ा ले जाया गया। वहां उन्हें स्नान कराकर चंदन का लेप लगाया गया और आरती की गई। इसके बाद बाबा को महासमाधि दी गई। आज उनकी समाधि स्थल शिरडी में लाखों भक्तों के लिए श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है।


FAQ

1. साईं बाबा का जन्म कब और कहां हुआ था?

साईं बाबा के जन्म को लेकर विवाद है। कुछ लोग मानते हैं कि उनका जन्म 1836 में हुआ, जबकि कुछ के अनुसार यह 1838 में हुआ था।

2. साईं बाबा का अंतिम संस्कार हिंदू या मुस्लिम रीति से हुआ था?

वोटिंग के बाद, बाबा का अंतिम संस्कार हिंदू परंपराओं के अनुसार बूटीवाड़ा में किया गया।

3. बूटीवाड़ा में समाधि क्यों बनाई गई?

बाबा ने अपने अंतिम समय में स्वयं को बूटीवाड़ा ले जाने की इच्छा जताई थी, इसलिए यहीं उनकी समाधि बनाई गई।


यह लेख साईं बाबा के जीवन के अंतिम समय, उनके निधन के बाद के विवादों और समाधि की कहानी को विस्तार से प्रस्तुत करता है। इससे पाठक उनकी महानता और उनके अनुयायियों की आस्था को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। News Source: News18

ब्यूरो रिपोर्ट, टॉकआज मीडिया (Talkaaj Media)  

NO: 1 हिंदी न्यूज़ वेबसाइट TalkAaj.com (बात आज की)

(देश और दुनिया की ताज़ा खबरें सबसे पहले पढ़ें TalkAaj (Talk Today) पर , आप हमें FacebookTwitterInstagram और  Youtube पर फ़ॉलो करे)

सहयोग करें   

एनडीटीवी हो या ‘द वायर’, इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

WhatsApp Image 2024 08 31 at 1.18.18 PM

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment