Donald Trump के Tariff पर कोर्ट का बड़ा फैसला: राष्ट्रपति ने फैसले को ‘बर्बाद करने वाला’ बताया
टैरिफ (Tariff) को लेकर पूरी दुनिया में खलबली मचाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक बड़ा झटका लगा है। अमेरिकी कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि ट्रंप द्वारा लगाए गए अधिकांश टैरिफ गैरकानूनी हैं। हालांकि, कोर्ट ने फिलहाल इन पर तुरंत रोक नहीं लगाई है। इस फैसले पर डोनाल्ड ट्रंप का भी रिएक्शन सामने आया है, जिसमें उन्होंने इसे पक्षपात भरा और अमेरिका की अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाला बताया है। इस कानूनी फैसले के बाद ट्रंप प्रशासन ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है, जिससे यह मुद्दा और भी गहरा हो गया है।
शक्तियों का गलत इस्तेमाल: कोर्ट ने Donald Trump की मनमानी पर लगाई लगाम
यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा है कि ट्रंप ने अपनी इमरजेंसी पावर का गलत इस्तेमाल किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को दुनिया के हर देश पर मनचाहा टैरिफ लगाने का कोई भी कानूनी अधिकार नहीं है। कोर्ट का मानना है कि राष्ट्रपति को टैरिफ लगाने का असीमित अधिकार नहीं दिया जा सकता है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए फिलहाल ट्रंप के फैसलों पर तुरंत रोक नहीं लगाई गई है और उन्हें सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देने का मौका दिया गया है।
टैरिफ की आड़ में दुनिया को धमका रहे ट्रंप के लिए यह एक बड़ा कानूनी झटका है। इससे पहले न्यूयॉर्क की फेडरल ट्रेड कोर्ट ने भी इसी तरह का फैसला सुनाया था, जिसे अब कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट ने काफी हद तक बरकरार रखा है। जजों ने 7-4 के फैसले में यह भी कहा कि लगता है कि कांग्रेस का इरादा राष्ट्रपति को टैरिफ लगाने का असीमित अधिकार देना नहीं था। फिलहाल कोर्ट ने टैरिफ को तुरंत रद्द नहीं किया और ट्रंप प्रशासन को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने का वक्त दिया है। अक्टूबर तक ट्रंप इस फैसले को चुनौती दे सकते हैं, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट के हाथ में चला जाएगा।
ट्रंप का गुस्सा और कानूनी लड़ाई का अगला कदम
अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump ने कोर्ट के इस फैसले पर गहरी नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा है कि, “अगर इस फैसले को लागू होने दिया गया, तो यह सचमुच संयुक्त राज्य अमेरिका को बर्बाद कर देगा।” इस मामले पर व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कुश देसाई ने कहा कि, “ट्रंप ने कानून के मुताबिक ही काम किया और इस मामले में आखिरकार हमारी जीत होगी।” इसका मतलब साफ है कि ट्रंप प्रशासन अब फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है, जिससे यह कानूनी लड़ाई और लंबी खिंच सकती है।
अमेरिकी कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला देश को बड़े आर्थिक नुकसान से बचा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने अमेरिकी व्यापार के हित में यह फैसला सुनाया है। अब अगर सुप्रीम कोर्ट में भी यही फैसला बरकरार रहता है तो यह ट्रंप सरकार के लिए एक बड़ी चेतावनी की तरह होगा, जिसमें यह साफ हो जाएगा कि ट्रंप अपनी मनमर्जी से कुछ भी नहीं कर सकते हैं। यह फैसला व्यापार नीतियों को लेकर राष्ट्रपति की शक्तियों पर एक अहम बहस को जन्म देता है।
कानूनी आधार और ऐतिहासिक संदर्भ
Donald Trump ने अपने इस फैसले को लागू करने के लिए इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पॉवर्स एक्ट (IEEPA) का सहारा लिया था, जिसमें राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर इसे सही ठहराया गया था। अमेरिकी संविधान के मुताबिक, टैरिफ समेत तमाम टैक्स लगाने की शक्ति कांग्रेस के पास है, लेकिन पिछले कुछ सालों से यह शक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति के हाथों में दे दी गई है, जिसका ट्रंप ने धड़ल्ले से इस्तेमाल किया है। इस कानून का सबसे ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका के विरोधी देशों जैसे ईरान और नॉर्थ कोरिया पर प्रतिबंध लगाने के लिए किया जाता है, लेकिन ट्रंप ने इसका दायरा बढ़ाकर दुनिया के कई देशों पर लागू कर दिया था।
कोर्ट में ट्रंप प्रशासन ने तर्क दिया कि 1971 के आर्थिक संकट में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के लगाए गए टैरिफ को भी तमाम कोर्ट्स ने मंजूरी दी थी। निक्सन प्रशासन ने 1917 के ‘ट्रेडिंग विद द एनिमी एक्ट’ के तहत अपने अधिकार का हवाला दिया था। सरकार ने यह भी तर्क दिया है कि अगर टैरिफ को रद्द कर दिया जाता है, तो उसे कुछ आयात करों को वापस करना पड़ सकता है जो उसने जमा किए हैं, जिससे अमेरिकी ट्रेजरी को बड़ा वित्तीय नुकसान हो सकता है। हालांकि, कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि ट्रंप को दुनिया के हर देश पर टैरिफ लगाने का कानूनी अधिकार नहीं दिया जा सकता है।

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