लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों पर दर्ज हो सकता है केस, हाईकोर्ट का सख्त फैसला!
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में दहेज हत्या के आरोपों को सही ठहराते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई महिला और पुरुष पति-पत्नी की तरह साथ रहते हैं, तो उन पर दहेज हत्या के प्रावधान लागू हो सकते हैं। यह आदेश जस्टिस राजबीर सिंह ने आदर्श यादव द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आरोपी और पीड़िता प्रासंगिक समय पर पति-पत्नी की तरह एक साथ रह रहे थे, और यही तथ्य दहेज हत्या का मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त है।
मामला क्या है?
2022 में प्रयागराज के कोतवाली थाने में याची आदर्श यादव के खिलाफ IPC की धारा 498-A, 304-B, और दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज हुआ था। एफआईआर में आरोप था कि शादी के लिए दहेज की मांग से परेशान होकर पीड़िता ने आत्महत्या कर ली थी। पुलिस ने जांच के बाद दहेज हत्या के आरोप में चार्जशीट दाखिल की थी।
आदर्श यादव ने इसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने ट्रायल कोर्ट द्वारा दायर चार्जशीट और खुद के खिलाफ चल रही कार्यवाही को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि चूंकि वह कानूनी रूप से मृतिका का पति नहीं थे, इसलिए उन पर दहेज हत्या का मामला नहीं चल सकता।
कोर्ट की सुनवाई
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि मृतिका और आरोपी की शादी कोर्ट के माध्यम से कानूनी रूप से हुई थी। आरोपी ने दहेज की मांग करते हुए पीड़िता को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, जिससे तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली। कोर्ट ने आरोपी की इस दलील को खारिज कर दिया कि वह कानूनी रूप से मृतिका का पति नहीं था।
कोर्ट का फैसला
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भले ही मृतिका और आरोपी की शादी कानूनी रूप से पंजीकृत नहीं थी, लेकिन वे पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे थे, इसलिए उन पर दहेज हत्या के प्रावधान लागू होते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई जोड़ा लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा हो, तो भी IPC की धारा 304-B और दहेज प्रतिषेध कानून के प्रावधान उन पर लागू हो सकते हैं।
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ पति ही नहीं, बल्कि उसके रिश्तेदार भी दहेज हत्या के लिए आरोपित हो सकते हैं। यह फैसला रीमा अग्रवाल बनाम अनुपम केस के फैसले पर आधारित है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दहेज हत्या के मामलों में पति और उसके परिवार के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, चाहे विवाह वैध हो या नहीं।
डिस्चार्ज अर्जी खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा याची की डिस्चार्ज अर्जी खारिज करने के फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि डिस्चार्ज आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय को यह तय करना होता है कि क्या मामले में ट्रायल की जरूरत है या नहीं। इस मामले में, ट्रायल के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, इसलिए याची की डिस्चार्ज अर्जी को खारिज करना सही था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि दहेज हत्या के आरोप में यह तय करना कि मृतिका कानूनी रूप से आरोपी की पत्नी थी या नहीं, यह सवाल ट्रायल के दौरान ही तय हो सकता है। इसके आधार पर, CRPC की धारा 482 के तहत हस्तक्षेप की जरूरत नहीं थी।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद कई कानूनी विशेषज्ञों ने इसे एक महत्वपूर्ण निर्णय माना है। यह फैसला उन मामलों में खास तौर पर महत्वपूर्ण है, जहां जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं और दहेज के मुद्दे पर विवाद होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भले ही विवाह कानूनी तौर पर मान्य न हो, लेकिन अगर एक जोड़ा पति-पत्नी की तरह रह रहा है, तो भी दहेज उत्पीड़न और हत्या के प्रावधान लागू किए जा सकते हैं।
इस फैसले का प्रभाव
यह फैसला दहेज उत्पीड़न और हत्या के मामलों में एक नजीर के रूप में देखा जा रहा है, खासकर उन मामलों में जहां जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं। इससे यह साफ हो गया है कि दहेज के खिलाफ कानून सिर्फ कानूनी रूप से पंजीकृत विवाहों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन जोड़ों पर भी लागू हो सकते हैं, जो सामाजिक रूप से पति-पत्नी की तरह रहते हैं।
इस पूरे मामले को समझाते हुए, यह स्पष्ट होता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज हत्या के कानून को लिव-इन रिलेशनशिप के मामलों में भी लागू करने का मार्ग प्रशस्त किया है। ऐसे मामलों में जहां कानूनी विवाह न हुआ हो, लेकिन संबंध पति-पत्नी की तरह हो, कानून का संरक्षण अब उन महिलाओं को भी मिलेगा, जो दहेज उत्पीड़न का शिकार होती हैं।
ब्यूरो रिपोर्ट, टॉकआज मीडिया (Talkaaj Media)
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