Friday, December 5, 2025

H1B Visa: Donald Trump के नए नियम, हर साल देने होंगे ₹8800000, भारतीय इंजीनियरों को बड़ा झटका | H1B Visa New Rules

by TALKAAJ
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H1B Visa New Rules

H1B Visa New Rules: डोनाल्ड ट्रंप के नए नियम, भारतीय पेशेवरों पर क्या होगा असर?

H1B Visa New Rules Hindi: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) ने हाल ही में H1B Visa के नियमों में बदलाव की घोषणा की है, जिसका सीधा असर भारतीय आईटी पेशेवरों और कंपनियों पर पड़ सकता है। इन नए नियमों के तहत, एच-1बी वीज़ा की सालाना फीस बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (लगभग ₹83 लाख) कर दी गई है। यह कदम अमेरिकी युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने और विदेशी कर्मचारियों पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

H1B Visa New Rules: किसे मिलेगा वीज़ा और क्यों बढ़ाई गई फीस?

एच-1बी वीज़ा (H-1B Visa) के लिए नई शर्तें लागू कर दी गई हैं, जिसके तहत अब कंपनियों को हर साल $100,000 (लगभग ₹83 लाख) की फीस देनी होगी। इस फैसले से लाखों विदेशी पेशेवरों पर असर पड़ सकता है, खासकर भारतीय आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर पर, जो अमेरिका के एच-1बी वीज़ा पर सबसे ज्यादा निर्भर है।

ट्रंप प्रशासन का मानना है कि यह कदम H-1B सिस्टम के दुरुपयोग को रोकेगा। व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने बताया कि यह प्रोग्राम सिर्फ उन लोगों के लिए होना चाहिए जो अमेरिका में दुर्लभ और उच्च-कुशल काम करते हैं, न कि ऐसे काम के लिए जिन्हें अमेरिकी पेशेवर भी कर सकते हैं। H-1B Visa की शुरुआत 1990 में हुई थी, जिसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में उच्च-शिक्षित और विशेषज्ञ विदेशी पेशेवरों को काम पर रखना था, जहां अमेरिकी वर्कफोर्स की कमी थी। हालाँकि, आलोचकों का कहना है कि समय के साथ कंपनियों ने इसका गलत फायदा उठाना शुरू कर दिया, जिससे अमेरिकी नौकरियों पर दबाव बढ़ा।

कंपनियां क्यों देती हैं H1B Visa की फीस?

H1B Visa कोई व्यक्ति सीधे नहीं ले सकता; इसे पाने के लिए किसी अमेरिकी कंपनी द्वारा स्पॉन्सरशिप की आवश्यकता होती है। कंपनी ही अमेरिकी सरकार को आवेदन भेजती है और वीज़ा की सभी फीस का भुगतान करती है। पहले यह फीस बहुत कम थी, जिसके कारण कई बड़ी आईटी कंपनियां हजारों-लाखों आवेदन डाल देती थीं। इससे अमेरिका में एंट्री-लेवल की नौकरियां विदेशी इंजीनियरों से भर जाती थीं।

अब तक, कंपनियों को केवल $215 की रजिस्ट्रेशन फीस और लगभग $780 की फॉर्म फीस देनी होती थी। लेकिन नए नियम के अनुसार, हर आवेदन के लिए कंपनियों को अब $100,000 (लगभग ₹83 लाख) देने होंगे। यह एक बहुत बड़ी रकम है, जिससे कंपनियां अब सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए आवेदन करेंगी जिनकी स्किल वास्तव में बहुत जरूरी है। इसका सीधा असर छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स पर होगा, जो इतनी बड़ी रकम खर्च नहीं कर पाएंगे और विदेशी कर्मचारियों को स्पॉन्सर करना कम कर देंगे।

भारतीय पेशेवर और H1B Visa: सबसे ज़्यादा संख्या

अमेरिका में H1B Visa धारकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल और कॉग्निजेंट जैसी भारतीय आईटी कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को अमेरिका भेजती हैं। इसके अलावा, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल और गूगल जैसी बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियां भी इस वीज़ा का उपयोग करती हैं।

एक तरफ जहां अमेरिकी टेक पेशेवरों की औसत सैलरी $100,000 से अधिक होती है, वहीं एच-1बी पर आने वाले विदेशी कर्मचारियों को अक्सर $60,000 सालाना के आसपास सैलरी मिलती है। इस तरह, कंपनियां लागत कम करने के लिए विदेशी कर्मचारियों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियों पर असर पड़ता है। कैलिफ़ोर्निया एच-1बी वीज़ा होल्डर्स का सबसे बड़ा केंद्र है, जहां बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर काम करते हैं।

क्या है H1B Visa?

H1B Visa एक गैर-प्रवासी वीज़ा है जो उन कुशल कर्मचारियों को दिया जाता है जिनकी अमेरिका में कमी है। यह वीज़ा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी पेशेवरों को काम पर रखने की अनुमति देता है। इस वीज़ा की वैधता छह साल की होती है, जिसके बाद धारक ग्रीन कार्ड या अमेरिकी नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है। एच-1बी वीज़ा धारक अपने बच्चों और पत्नी के साथ अमेरिका में रह सकते हैं। अमेरिकी कंपनियों की भारी डिमांड के कारण भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स इस वीज़ा को सबसे ज़्यादा हासिल करते हैं।

FAQs – H1B Visa New Rules

H1B Visa क्या है?

H1B Visa एक गैर-प्रवासी अमेरिकी वीज़ा है जो उन कुशल विदेशी कर्मचारियों को दिया जाता है जिनकी अमेरिका में कमी है। इसका उपयोग मुख्य रूप से टेक्नोलॉजी और आईटी जैसे क्षेत्रों में किया जाता है।

नए नियमों में क्या बदलाव हुआ है?

नए नियमों के अनुसार, एच-1बी वीज़ा के लिए अब कंपनियों को सालाना $100,000 (लगभग ₹83 लाख) की फीस चुकानी होगी, जो पहले बहुत कम थी।

भारतीयों पर क्या असर पड़ेगा?

भारतीय आईटी कंपनियां और पेशेवर इस वीज़ा पर सबसे अधिक निर्भर हैं, इसलिए बढ़ी हुई फीस का सीधा असर उन पर पड़ेगा, जिससे वीज़ा मिलना और मुश्किल हो जाएगा।

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