Karnataka Double Voting Case: डबल वोटिंग का दावा Rahul Gandhi के गले पड़ा, आर्टिकल 337 में घिरे तो होगी 7 साल जेल! समझें पूरा मामला
Karnataka Double Voting Case: राहुल गांधी ने कर्नाटक में कथित डबल वोटिंग को लेकर जो दावे किए थे, अब वही उनके लिए कानूनी मुश्किल बन सकते हैं। चुनाव आयोग ने उनके आरोपों को खारिज करते हुए सबूत पेश करने की मांग की है। अगर उनके दावे गलत साबित होते हैं, तो उन्हें 7 साल तक की जेल हो सकती है। आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
कर्नाटक में डबल वोटिंग के दावे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब एक कानूनी पचड़े में फंसते नजर आ रहे हैं। उन्होंने अपनी एक प्रेजेंटेशन के दौरान एक दस्तावेज दिखाते हुए दावा किया था कि यह चुनाव आयोग का रिकॉर्ड है। इस डॉक्यूमेंट में शगुन रानी नाम की एक महिला के पास दो वोटर आईडी होने और दो बार वोट करने का दावा किया गया था, जिस पर पोलिंग बूथ ऑफिसर के टिक मार्क भी लगे थे। अब यही दावा राहुल गांधी के गले की फांस बन गया है, क्योंकि चुनाव आयोग का कहना है कि पूरी कहानी ही उलट है।
कर्नाटक के मुख्य चुनाव आयुक्त ने राहुल गांधी को नोटिस जारी कर इस दावे का सबूत मांगा है। चुनाव आयोग की जांच के अनुसार, शगुन रानी ने दो बार वोट नहीं किया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर राहुल गांधी का दावा गलत पाया गया तो क्या होगा? इस स्थिति में उन पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) के आर्टिकल 337 के तहत कार्रवाई हो सकती है। तो आखिर यह आर्टिकल 337 क्या है, और इसके तहत क्या सजा मिल सकती है?
चुनाव आयोग ने Rahul Gandhi के आरोपों पर माँगा सबूत: वरना देश से माफ़ी माँगो
आर्टिकल 337: सरकारी दस्तावेजों की जालसाजी का कानून
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 337 एक गंभीर अपराध से संबंधित है। यह धारा उन मामलों में लागू होती है, जहां कोई व्यक्ति सरकारी दस्तावेज या कोर्ट रिकॉर्ड की जालसाजी करता है। इसमें वोटर आईडी, आधार कार्ड, जन्म-मृत्यु या विवाह पंजीकरण, सरकारी प्रमाणपत्र, कोर्ट की कार्यवाही के रिकॉर्ड, पावर ऑफ अटॉर्नी जैसे दस्तावेजों में हेरफेर या जालसाजी करना शामिल है।
राहुल गांधी ने जिस तरह चुनाव आयोग के डॉक्यूमेंट को गलत तरीके से पेश करने का आरोप उन पर लगाया गया है, अगर यह साबित होता है कि इसमें छेड़छाड़ की गई थी, तो यह इस कानून के दायरे में आ सकता है। ऐसा होने पर उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
आर्टिकल 337 के तहत सजा और कानूनी पहलू
कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी डॉक्यूमेंट को, चाहे वह कागजी हो या इलेक्ट्रॉनिक, जाली साबित करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे 7 साल तक की कठोर कारावास की सजा हो सकती है। इसके अलावा, उस पर भारी जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। कानून के जानकारों का कहना है कि यह अपराध गैर-जमानती भी हो सकता है, यानी दोषी पाए जाने पर गिरफ्तारी के बाद जमानत केवल कोर्ट से ही मिल सकती है।
इस मामले में, अगर आरोप साबित होते हैं, तो इसका असर राहुल गांधी के राजनीतिक करियर पर भी पड़ सकता है। जन-प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत, अगर किसी नेता को 2 साल या उससे ज्यादा की सजा होती है, तो उसकी संसद या विधानसभा की सदस्यता जा सकती है। राहुल गांधी के मामले में अगर कोर्ट में यह साबित होता है कि उन्होंने वोटर लिस्ट से जुड़ा कोई जाली डॉक्यूमेंट बनाया या इस्तेमाल किया, तो धारा 337 के तहत उन पर केस चल सकता है। दोषी साबित होने पर उन्हें 7 साल तक की जेल, जुर्माना, और सांसद का पद गंवाने का खतरा हो सकता है।
मामले में पेच और कांग्रेस का पलटवार
इस मामले में सबसे अहम बात यह है कि चुनाव आयोग को कोर्ट में यह साबित करना होगा कि डॉक्यूमेंट जानबूझकर जाली बनाया गया था या फिर यह गलती से हुआ। सबूत पेश करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष, यानी चुनाव आयोग पर होगी। दोष साबित होने पर सजा और जुर्माने की मात्रा अदालत ही तय करेगी।
कर्नाटक चुनाव आयोग के दावों पर कांग्रेस ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने पलटवार करते हुए कहा है कि राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर जो गंभीर आरोप लगाए हैं, वे आयोग के अपने ही डेटा पर आधारित हैं। उन्होंने कहा, “जब आप रंगे हाथ पकड़े गए हैं, तो अब आप उनसे दस्तावेज मांग रहे हैं? यह वही डेटा है जो आपके पास है।”
कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव आयोग डिजिटल, मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट देने से इनकार कर रहा है, सीसीटीवी फुटेज तक पहुंच रोक रहा है और सबूत मिटाने की कोशिश कर रहा है। राहुल गांधी का कहना है कि सबूत सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, फिर भी आयोग व्हिसलब्लोअर से सवाल कर रहा है। कांग्रेस ने चुनाव आयोग से सीधे पांच सवाल पूछे हैं:
- विपक्ष को डिजिटल वोटर लिस्ट क्यों नहीं दी जाती?
- सीसीटीवी और वीडियो सबूत मिटाने का आदेश किसने दिया?
- फर्जी वोटिंग और वोटर लिस्ट में गड़बड़ी क्यों हुई?
- विपक्षी नेताओं को धमकाने का कारण क्या है?
- क्या चुनाव आयोग अब भाजपा के चुनाव एजेंट की तरह काम कर रहा है?
इन सवालों के साथ कांग्रेस ने चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं, जिससे यह मामला और भी गहरा गया है।
FAQs
राहुल गांधी पर आर्टिकल 337 क्यों लगाया जा सकता है?
राहुल गांधी पर कर्नाटक में डबल वोटिंग से जुड़े फर्जी सरकारी दस्तावेज़ पेश करने का आरोप है। अगर यह आरोप साबित होता है, तो उन पर भारतीय न्याय संहिता के आर्टिकल 337 के तहत कार्रवाई हो सकती है।
आर्टिकल 337 के तहत क्या सजा मिल सकती है?
आर्टिकल 337 के तहत, सरकारी दस्तावेज़ों की जालसाजी के लिए दोषी पाए जाने पर 7 साल तक की कठोर कारावास और भारी जुर्माने का प्रावधान है।
क्या इस मामले से राहुल गांधी की सदस्यता जा सकती है?
अगर राहुल गांधी को इस मामले में 2 साल या उससे ज्यादा की सजा होती है, तो जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के अनुसार उनकी संसद सदस्यता जा सकती है।
राहुल गांधी ने डबल वोटिंग को लेकर क्या दावा किया था?
राहुल गांधी ने कर्नाटक में चुनाव आयोग के एक कथित दस्तावेज़ को दिखाते हुए दावा किया था कि शगुन रानी नाम की महिला के पास दो वोटर आईडी हैं और उसने दो बार वोट किया है। इस दावे पर चुनाव आयोग ने सबूत की मांग करते हुए उन्हें नोटिस भेजा है।
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के दावे पर क्या प्रतिक्रिया दी है?
कर्नाटक के मुख्य चुनाव आयुक्त ने राहुल गांधी के दावे को खारिज किया है और कहा है कि उनकी जांच के मुताबिक, शगुन रानी ने दो बार वोट नहीं किया है। उन्होंने राहुल गांधी को अपने दावे को साबित करने के लिए सबूत पेश करने को कहा है।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 337 क्या है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 337 सरकारी दस्तावेज़ों जैसे वोटर आईडी, आधार कार्ड, या कोर्ट रिकॉर्ड की जालसाजी से संबंधित है। इस धारा के तहत ऐसे अपराधों के लिए 7 साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
क्या इस मामले में राहुल गांधी को जमानत मिल सकती है?
कानून विशेषज्ञों के अनुसार, आर्टिकल 337 के तहत सरकारी दस्तावेज़ों की जालसाजी एक गंभीर अपराध है और यह गैर-जमानती हो सकता है। ऐसे में, दोषी पाए जाने पर गिरफ्तारी के बाद जमानत केवल कोर्ट से ही मिल सकती है।
कांग्रेस ने इस मामले पर क्या कहा है?
कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया है कि आयोग जानबूझकर डिजिटल वोटर लिस्ट और सीसीटीवी फुटेज जैसे सबूतों को रोक रहा है। उन्होंने आयोग से पांच सीधे सवाल पूछे हैं, जिनमें चुनाव आयोग के बीजेपी एजेंट की तरह काम करने का आरोप भी शामिल है।
(देश और दुनिया की ताज़ा खबरें सबसे पहले पढ़ें TalkAaj (Baat Aaj Ki) पर , आप हमें Facebook, Twitter, Instagram और Youtube पर फ़ॉलो करे)