Mahila Naga Sadhu: महिला नागा साधु बनना आसान नहीं: जानिए इस कठोर जीवन के पीछे के रहस्यों और भयानक परंपराओं को!

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Mahila Naga Sadhu: महिला नागा साधु बनना आसान नहीं: जानिए इस कठोर जीवन के पीछे के रहस्यों और भयानक परंपराओं को!

Female Naga Sadhu : नागा साधु बनना किसी साधारण कार्य से कम नहीं है। पुरुष नागा साधु की तरह महिला नागा साधु भी होती हैं, लेकिन उनका सफर और जीवन और भी कठिन होता है। महिला नागा साधु बनने के लिए बहुत सी चुनौतियों और कठिन नियमों से गुजरना पड़ता है। आइए जानते हैं, महिला नागा साधुओं का जीवन कैसा होता है और क्यों इसे जीते जी बेहद कठिन माना जाता है।

नागा साधु कौन होते हैं?

नागा साधु साधु-संतों की एक विशेष परंपरा है। “नागा” का मतलब होता है “नग्न,” लेकिन इसका अर्थ हर किसी के लिए अलग होता है। पुरुष नागा साधु पूर्ण रूप से निर्वस्त्र रहते हैं, वहीं महिला नागा साधुओं के लिए नियम थोड़े अलग होते हैं।

क्या महिला नागा साधु भी निर्वस्‍त्र रहती हैं?

नहीं, महिला नागा साधु पुरुषों की तरह निर्वस्त्र नहीं रहतीं। वे गेरुए रंग का एक विशेष वस्त्र धारण करती हैं जिसे बिना सिला हुआ कपड़ा कहा जाता है। इसे “गंती” कहा जाता है। महिला नागा साधुओं को केवल यही एक वस्त्र पहनने की अनुमति होती है। वे अपने सिर पर तिलक लगाती हैं और लंबे जटा धारण करती हैं, जो उनके साधु जीवन का प्रतीक होता है।

कठिन तप और साधना की प्रक्रिया

महिला नागा साधु बनने के लिए महिलाओं को पहले कठिन तप और साधना करनी होती है। वे गुफाओं, जंगलों, पहाड़ों आदि में रहकर तप करती हैं और भगवान की भक्ति में लीन रहती हैं। यह साधना उनका जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाती है, और इसे पूरा करना बेहद कठिन होता है।

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कई साल का ब्रह्मचर्य पालन

महिला नागा साधु बनने से पहले, उन्हें 6 से 12 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। यह एक परीक्षा होती है जिसके बिना गुरु द्वारा नागा साधु बनने की अनुमति नहीं मिलती। यह साधना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो उनके आत्मिक और शारीरिक बल का परिक्षण करता है।

सिर मुंडवाने की परंपरा

महिला नागा साधुओं को दीक्षा से पहले अपना सिर मुंडवाना पड़ता है। इस प्रक्रिया में उन्हें शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। यह उनके सांसारिक जीवन से अलग होने का प्रतीक है और इस मार्ग पर चलने के उनके संकल्प की पुष्टि करता है।

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जीते जी करना पड़ता है पिंडदान

नागा साधु बनने के लिए, महिला संन्यासिनी को अपने सांसारिक बंधनों को तोड़ना पड़ता है। इस प्रक्रिया के तहत उन्हें जीते जी अपना पिंडदान करना होता है। हिंदू धर्म में पिंडदान एक मृत्यु के बाद की परंपरा है, लेकिन नागा साधुओं के लिए यह परंपरा उनके नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक होती है।

कुंभ में ही दिखती हैं महिला नागा साधु

महिला नागा साधु आमतौर पर साधारण जीवन से दूर एकांत में जीवन बिताती हैं। वे केवल कुंभ जैसे खास अवसरों पर पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए सार्वजनिक रूप से सामने आती हैं। उनके लिए यह एक विशेष धार्मिक कृत्य होता है, जिसमें वे दुनिया के सामने अपने विश्वास और साधना का प्रदर्शन करती हैं।

“माता” का संबोधन

महिला नागा साधुओं को पुरुष नागा साधुओं की तरह सम्मान मिलता है। उन्हें माता कहकर संबोधित किया जाता है, जो उनके आध्यात्मिक और धार्मिक योगदान का प्रतीक है।


महिला नागा साधु बनने का मार्ग बेहद कठिन होता है। इसमें कई वर्षों की साधना, तपस्या, और आत्म-त्याग शामिल होता है। इस मार्ग पर चलने वाली महिलाएं दुनिया से दूर, आत्मज्ञान की खोज में अपने जीवन का त्याग करती हैं।

ब्यूरो रिपोर्ट, टॉकआज मीडिया  

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