पारसी न तो शव का को जलाते हैं और न ही दफनाते हैं, जानिए कैसे होगा रतन टाटा (Ratan Tata) का अंतिम संस्कार
Ratan Tata last rites: भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा का अंतिम संस्कार मुंबई में राजकीय सम्मान के साथ होगा। रतन टाटा पारसी थे। क्या आप जानते हैं कि पारसी लोगों का अंतिम संस्कार कैसे हिंदुओं और मुसलमानों से अलग होता है?
नई दिल्ली: Ratan Tata का निधन हो गया है। वह 86 साल के थे। आज यानी 10 अक्तूबर को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। रतन टाटा का अंतिम संस्कार वर्ली में राजकीय सम्मान से होगा। चूंकि वह पारसी थे, उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाज के अनुसार होना चाहिए। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि उनका अंतिम संस्कार पारसी धर्म के अनुसार नहीं होगा।
पारसी अंतिम संस्कार की प्रक्रिया
पारसी लोगों का अंतिम संस्कार हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्म से अलग होता है। हिंदू शवों को जलाते हैं, जबकि मुसलमान और ईसाई दोनों शवों को दफन करते हैं। पारसी लोग शवों को खुली जगह पर छोड़ देते हैं ताकि सूर्य और पक्षी उन्हें ग्रहण कर सकें। यानी शवों को गिद्धों और चीलों के हवाले किया जाता है। बौद्ध धर्म के लोग भी इसी प्रकार का अंतिम संस्कार करते हैं।
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टॉवर ऑफ साइलेंस
पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की यह प्रक्रिया लगभग 3000 साल से चली आ रही है। शवों को जिस स्थान पर छोड़ा जाता है, उसे टॉवर ऑफ साइलेंस कहते हैं। यह एक गोलाकार, खोखली इमारत होती है। पारसी लोग इसे आकाश में दफनाने का तरीका मानते हैं, जिसे दोखमेनाशिनी (Dokhmenasshini) कहा जाता है। जब किसी पारसी का निधन होता है, तो उनका शव इसी टॉवर में छोड़ दिया जाता है।
भारत में पारसी समुदाय
भारत में पारसी लोगों की संख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 57,264 थी। लगभग 1200 साल पहले पारसी लोग भारत आए थे। ये लोग जोरोस्ट्रियन धर्म के अनुयायी हैं, जो दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। यह धर्म ईसा मसीह से भी लगभग दो हजार साल पुराना है। पारसी लोग पर्शिया से आए थे, इसलिए इन्हें भारत में पारसी कहा जाता है। पर्शिया का मतलब आज का ईरान है।
ईरान छोड़ने का कारण
ईरान में 641 तक जोरोस्ट्रियन धर्म के लोगों की संख्या अधिक थी। लेकिन जब अरबों ने ईरान पर आक्रमण किया, तब पर्शिया का राजा यज्देगर्द शहरियार युद्ध में मारा गया। इस उत्पीड़न से बचने के लिए जोरोस्ट्रियन लोगों का पलायन शुरू हुआ, जो कई सदियों तक चलता रहा। इसी दौरान 18 हजार लोगों का एक समूह भारत पहुंचा।
मृत शरीर को अशुद्ध मानते हैं पारसी धर्म के लोग
पारसी समाज में शव को खुले आसमान में छोड़ने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है। पारसी लोग मानते हैं कि मृत शरीर अशुद्ध होता है। वे पर्यावरण प्रेमी होते हैं, इसलिए शव को जलाने का विचार नहीं करते, क्योंकि इससे अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है। इसी तरह, शवों को दफन करना भी नहीं करते, क्योंकि इससे धरती प्रदूषित होती है। पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, और अग्नि को पवित्र माना जाता है। पारंपरिक पारसी का मानना है कि शवों का जलाना धार्मिक दृष्टिकोण से सही नहीं है।
Ratan Tata के अंतिम संस्कार की विधि
रतन टाटा के पार्थिव शरीर को वर्ली के पारसी शमशान में ले जाया जाएगा। फिर, उनका शव प्रार्थना हॉल में रखा जाएगा। प्रार्थना हॉल में लगभग 200 लोग शामिल हो सकते हैं। प्रार्थना का समय लगभग 45 मिनट होगा। इसके बाद, प्रार्थना हॉल में पारसी रीति से ‘गेह-सारनू’ पढ़ा जाएगा। फिर, रतन टाटा के मुंह पर एक कपड़े का टुकड़ा रखकर ‘अहनावेति’ का पहला अध्याय पढ़ा जाएगा। यह एक शांति प्रार्थना की प्रक्रिया है। प्रार्थना पूरी होने के बाद पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी होगी।
FAQs:
1. रतन टाटा का अंतिम संस्कार कब होगा?
रतन टाटा का अंतिम संस्कार 10 अक्तूबर को किया जाएगा।
2. पारसी लोग शवों का अंतिम संस्कार कैसे करते हैं?
पारसी लोग शवों को खुली जगह पर छोड़ देते हैं ताकि पक्षी उन्हें ग्रहण कर सकें।
3. टॉवर ऑफ साइलेंस क्या है?
यह एक गोलाकार इमारत है, जहां पारसी लोग शवों को छोड़ते हैं।
4. भारत में पारसी समुदाय की संख्या कितनी है?
भारत में पारसी लोगों की संख्या 57,264 है।
5. पारसी धर्म में शव को अशुद्ध क्यों माना जाता है?
पारसी धर्म के अनुसार, मृत शरीर अशुद्ध होता है, इसलिए इसे जलाने या दफनाने की बजाय खुला छोड़ दिया जाता है।
ब्यूरो रिपोर्ट, टॉकआज मीडिया (Talkaaj Media)
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