राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का ‘सेकुलरिज्म’ फिर से विवादों में: भगवानों की तस्वीरें आखिर क्यों गायब?

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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का ‘सेकुलरिज्म’ फिर से विवादों में: भगवानों की तस्वीरें आखिर क्यों गायब?

राहुल गांधी के दोहरे रवैये को अब नेटिजन्स भी बखूबी समझ चुके हैं। उन्होंने पुराने पोस्ट की तस्वीरें साझा करके सवाल उठाए हैं कि जब संसद में जोर-शोर से भगवान की तस्वीरें दिखाने की बात आती है, तो बाहर हिंदू त्योहारों पर ये तस्वीरें क्यों गायब हो जाती हैं?

हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का महत्व सदियों से रहा है। सनातन धर्म को मानने वाले लोग पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने ही आराधना करते हैं। अगर आप किसी देवी-देवता का नाम लेंगे, तो सबसे पहले उनके रूप की छवि आपके मन में आएगी, और फिर आगे कुछ सोच पाएंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके मन में हिंदू धर्म के प्रति आस्था है। जिनके मन में यह आस्था नहीं होती, वे मूर्ति और मूर्ति पूजा दोनों से परहेज करते हैं। ऐसे लोग त्योहारों पर आपको शुभकामनाएं तो देंगे, लेकिन भगवान के रूप को साझा करने से बचेंगे।

इस बात को समझने के लिए, लिबरलों द्वारा त्योहारों पर साझा किए गए पोस्ट पर ध्यान देना जरूरी है। ये लोग हर त्योहार पर सभी समुदायों को बधाई देते हैं, लेकिन हिंदू त्योहारों पर इनका अंदाज थोड़ा अलग होता है।

उदाहरण के लिए, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का जन्माष्टमी पर किया गया पोस्ट देखें। उन्होंने एक बाँसुरी और मोरपंख के साथ जन्माष्टमी की शुभकामनाएं दीं और लिखा, “सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। आशा करता हूं कि यह पर्व आपके जीवन को नई उमंग और उत्साह से भर दे।”

राहुल गांधी के इस पोस्ट में जन्माष्टमी की बधाई दी गई, लेकिन इस त्योहार का महत्व और किनके जन्म के कारण इसे मनाया जाता है, इस पर एक शब्द भी नहीं लिखा गया। पोस्ट में नीले बैकग्राउंड में बाँसुरी और मोरपंख दिखाया गया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि यह किसका प्रतीक है। कहीं भी श्रीकृष्ण का चित्र नहीं दिखाया गया।

आप सोच सकते हैं कि इसमें क्या समस्या है, हर किसी का अपना तरीका होता है बधाई देने का। कुछ लोग प्रतीकों का उपयोग करते हैं, कुछ बिना तस्वीर के, और कुछ सिर्फ टेक्स्ट से। यह सही बात है, क्रिएटिविटी के नाम पर कोई भी विधा अपनाई जा सकती है, लेकिन भावनाएं साफ होनी चाहिए। बहुत से लोग भगवान के प्रतीकों का उपयोग करते हैं, लेकिन उनके पोस्ट से भगवान की मूर्ति हमेशा गायब नहीं होती। राहुल गांधी के केस में यह बार-बार होता है।

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यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी के सोशल मीडिया पोस्ट से भगवान की मूर्तियां गायब हुई हैं। महाशिवरात्रि के मौके पर उन्होंने कैलाश पर्वत की तस्वीर लगाई, लेकिन शिवलिंग की नहीं। जगन्नाथ यात्रा के समय मंदिर के शिखर की तस्वीर तो लगाई, लेकिन न रथ और न ही भगवान जगन्नाथ की तस्वीर।

इसी तरह गणेश चतुर्थी पर मोदक, भोग, अगरबत्ती की तस्वीरें लगाई गईं, लेकिन गणेश जी की तस्वीर नहीं। श्रीराम नवमी पर सिर्फ टेक्स्ट से बधाई दी गई, लेकिन श्रीराम का चित्र नहीं लगाया गया। दीपावली पर तो बिना किसी तस्वीर के ही शुभकामनाएं दे दीं।

ये कुछ चुनिंदा उदाहरण हैं। राहुल गांधी की टाइमलाइन पर ऐसे और भी कई वाकये मिल सकते हैं, जहाँ भगवान के चित्रों से बचा गया हो। इसका मकसद शायद दूसरे समुदायों को आकर्षित करना और खुद को सेकुलर दिखाना है। आम दिनों में श्रीराम की तस्वीर से बचने वाले राहुल गांधी, राम मंदिर जाने से भी कतराते हैं। लेकिन हिंदू त्योहारों पर भी तस्वीर न लगाना समझ से परे है। इसे सिर्फ संयोग नहीं कहा जा सकता। यह मूर्ति पूजा का विरोध प्रतीत होता है।

जब राहुल गांधी को हिंदू धर्म पर सवाल उठाना होता है या हिंदुओं को हिंसक दिखाना होता है, तब वे संसद में भगवान की तस्वीरें दिखाने से परहेज नहीं करते। क्योंकि वहां उनकी मंशा हिंदुओं को बदनाम करने की होती है। लेकिन जब बात हिंदुओं की आस्था का सम्मान करने की आती है, तो वे चालाकी से उन तस्वीरों को छिपा लेते हैं। राहुल गांधी के इस दोहरे रवैये को अब नेटिजन्स भी बखूबी समझ चुके हैं। उन्होंने पुराने पोस्ट की तस्वीरें साझा करके सवाल उठाए हैं कि जब संसद में चिल्लाते हुए भगवान की तस्वीर दिखा दी जाती है, तो सदन के बाहर हिंदू त्योहारों के वक्त ये तस्वीरें क्यों गायब हो जाती हैं।

अपडेट: कांग्रेस के कुछ समर्थकों ने राहुल गांधी के पुराने और हालिया ट्वीट्स दिखाए हैं, जिनमें हिंदू देवताओं की तस्वीरें शामिल हैं। इसके बावजूद, इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि हिंदू त्योहारों पर राहुल गांधी के सोशल मीडिया पोस्ट से बार-बार देवी-देवताओं की तस्वीरें गायब रही हैं। यही वजह है कि लोगों ने उनके सोशल मीडिया पोस्टिंग पैटर्न पर सवाल उठाया है।

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