Raigad Landslide: अब तक 22 की मौत, मलबे में दबे लोगों की तलाश जारी, क्या बचाया जा सकता था?
रायगढ़ भूस्खलन | ‘हमने पुनर्वास की मांग की, नौकरियां मांगीं। लेकिन हमें कुछ नहीं मिला. बहुत तेज़ बारिश हो रही थी इसलिए हमने अपनी झोपड़ी तलहटी में बनाई। लेकिन वन विभाग के अधिकारियों ने उसे भी तोड़ दिया. यह कहना है इरशालवाड़ी हादसे में जीवित बचे लोगों का।
महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले के इरशालवाड़ी गांव में गुरुवार को भारी बारिश के बाद हुए भूस्खलन से 22 लोगों की मौत हो चुकी है, 21 लोग घायल हैं जबकि 86 लापता लोगों की तलाश जारी है.
प्रशासन के अनुसार भूस्खलन प्रभावित 229 लोगों में से 143 लोगों को खोज निकाला गया है.
ये पहाड़ के पास बसा एक दूरदराज का गांव है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस गांव में महज़ 48 घर हैं. यहां की आबादी सिर्फ़ 228 है.

गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाली कोई सड़क नहीं है. इसके कारण गांव के लोगों को शिक्षा और इलाज जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया नहीं हो पाती हैं.
गांव के लोगों का कहना है कि उनके सामने रोजगार की भी समस्या है. इसलिए गांव के लोगों ने पुनर्वास की मांग की थी, लेकिन उनका कहना है कि यह मांग अब तक पूरी नहीं हो सकी है.
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर गांव के लोगों को कहीं और बसाया जाता तो क्या इस हादसे में मरने वालों की जान बचाई जा सकती थी?

सरकार पर उठ रहे सवाल
लोग कह रहे हैं कि जब राज्य के कई इलाकों, खासकर कोंकण क्षेत्र में भारी बारिश की चेतावनी जारी की गई थी, तो सरकार ने ऐसे संवेदनशील इलाकों के लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए?
विपक्ष का आरोप है कि सरकार कुर्सी बचाने के लिए विधायकों की जोड़-तोड़ में लगी रही और बारिश और बाढ़ से निपटने के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किए.
ऐसा आरोप महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता अमित ठाकरे ने लगाया है.
हालांकि सरकार का कहना है कि हादसे के तुरंत बाद बचाव और राहत का काम शुरू कर दिया गया.
20 जुलाई को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत राज्य सरकार के कई अन्य मंत्री भी दुर्घटनास्थल पर पहुंचे थे. उप मुख्यमंत्री अजित पवार और देवेन्द्र फड़णवीस भी नियंत्रण कक्ष से स्थिति पर नजर रखे हुए हैं।
लेकिन सरकार पर लगातार सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए गए ताकि ये हादसा हो ही न.

लापरवाही के आरोप पर सरकार का पक्ष
महाराष्ट्र पिछले एक साल से राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है। इधर, पार्टियों में बगावत, विधायकों की जोड़-तोड़, मुकदमेबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार जारी है.
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे का कहना है, ”इरशालवाड़ी की घटना बेहद दुखद है. मैं घायल लोगों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं।”
”हादसे के तुरंत बाद मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता था, लेकिन अगर जिला प्रशासन यह अनुमान नहीं लगा पा रहा है कि किन इलाकों में भूस्खलन हो सकता है, तो यह कैसा जिला प्रशासन है.”
कांग्रेस नेता नाना पटोले ने 20 जुलाई को दुर्घटनास्थल का दौरा किया. उन्होंने हादसे में बचे लोगों से मुलाकात की.
उन्होंने कहा, ”अगर समय रहते इरशालवाड़ी के लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया होता तो यह हादसा नहीं होता. सरकार ने उचित कदम नहीं उठाए।”
“अगर राज्य में भारी बारिश की चेतावनी थी, तो लोगों को भूस्खलन-संभावित क्षेत्रों से निकाला जाना चाहिए था। तब कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी।”

बीबीसी मराठी से बात करते हुए राहत एवं पुनर्वास मंत्री अनिल पाटिल कहते हैं, “गांव के पुनर्वास को लेकर चर्चा चल रही है. 2021 तक नियम था कि किसी दुर्घटना के बाद वहां के लोगों का पुनर्वास किया जाता है.”
“लेकिन 2021 से ये तय किया गया है कि ऐसे खतरनाक इलाकों की पहचान की जाए और वहां के लोगों का पहले ही पुनर्वास किया जाए. ये गांव भी इसी लिस्ट में है.”
वह कहते हैं, “पहले यह इस सूची में नहीं था. अब कलेक्टर को लोगों के पुनर्वास के लिए कहा गया है.”
मुख्यमंत्री एकनाश शिंदे ने गुरुवार को दुर्घटनास्थल का दौरा किया. उन्होंने बताया कि गांव के लोगों के स्थायी पुनर्वास को लेकर स्थानीय अधिकारियों से चर्चा की गयी.
उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने बताया कि ये गांव बहुत दूरदराज के इलाकों में हैं और वहां तक पहुंचना बहुत मुश्किल है.
उन्होंने कहा कि यह गांव अति संवेदनशील क्षेत्र की श्रेणी में नहीं आता है और यहां पहले कभी ऐसी कोई घटना नहीं हुई है.


क्या कहते हैं विशेषज्ञ
पश्चिमी घाट के इकोसिस्टम पर रिसर्च के लिए बनाई गई गाडगिल कमेटी ने अगस्त 2011 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.
इसे लेकर विपक्ष ने सरकार से पूछा कि इस कमेटी की रिपोर्ट को लागू क्यों नहीं किया गया?
संवेदनशील इलाके में रहने वाले लोगों का पुनर्वास क्यों नहीं किया गया. क्या सरकार हादसे का इंतज़ार कर रही थी?
इसके जवाब में उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने कहा कि गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने संवेदनशील गांवों की पहचान कर ली है और इन्हें लेकर राज्य सरकार की योजना केंद्र सरकार को सौंप दी गई है.
सरकार की आलोचना करते हुए वरिष्ठ पर्यावरणविद् माधव गाडगिल कहते हैं, ”पश्चिमी घाट जैव विविधता विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई है. अगर इस रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को समय रहते लागू किया जाता तो कई दुर्घटनाओं से बचा जा सकता था.”
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