शंकराचार्य (Shankaracharya) ने उठाया सवाल: मुस्लिम मदरसे चल सकते हैं, तो हिंदू धर्म क्यों नहीं पढ़ा सकते?
Shankaracharya raised questions about religious education
Shankaracharya Raised Questions On Religious Education for Hindus: शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Shankaracharya Avimukteshwarananda Saraswati) ने धार्मिक शिक्षा को लेकर बड़ा सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि अगर मुस्लिम अपने बच्चों को मदरसों में धार्मिक शिक्षा दे सकते हैं, तो हिंदू अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा क्यों नहीं दे सकते? उनका मानना है कि यही कारण है कि धर्मांतरण हो रहा है क्योंकि हिंदू अपने धर्म को जानते ही नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग खुद को हिंदू नेता कहते हैं, उन्होंने भी आज तक धारा 28(1) में कोई संशोधन नहीं किया है।
हिंदू नेता भी कुछ नहीं कर रहे
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने एक वीडियो में कहा, “जो अल्पसंख्यक हैं, वे अपने मदरसों में अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा दे सकते हैं। लेकिन हिंदुओं के गुरुकुल तो अंग्रेजों के समय ही तोड़ दिए गए और स्कूलों में हम अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते। आपने अपने बच्चों की धर्म शिक्षा बंद करवा दी। यह किसने किया, धर्माचार्यों ने किया या राजनेताओं ने किया?” उन्होंने कहा कि 100 से ज्यादा संशोधन भारत के संविधान में अब तक हुए हैं, लेकिन हिंदू नेताओं ने कभी धारा 28(1) का संशोधन नहीं किया कि सबको धर्म की शिक्षा देने की छूट है।
सबको मुसलमान बना देंगे
शंकराचार्य ने आगे कहा, “जो हिंदू बच्चा अपने धर्म को जानता ही नहीं है, वह क्या करेगा। एक मामूली मुसलमान भी अरबी, फारसी और उर्दू जानता होगा, लेकिन हमारा हिंदू, क्या संस्कृत जानता है? उसका सारा साहित्य संस्कृत में है, तो वह कहां से जानेगा। अब कहते हैं, ‘गजवा-ए-हिंद’ हो जाएगा। वे लोग मुहिम चला रहे हैं कि सबको मुसलमान बना देंगे। वे बना ही देंगे क्योंकि वे अपने ग्रंथ पढ़-पढ़कर धार्मिक तर्क देना जानते हैं। और हमारा बच्चा उनका जवाब जानता ही नहीं। ऐसी स्थिति में जब भी बातचीत होगी, वह कमजोर पड़ जाएगा। उसे लगेगा कि हमारा धर्म कमजोर है। उसे यह नहीं पता कि हमारा धर्म बहुत मजबूत है पर मैं तो उसका ज्ञान न होने के कारण कमजोर पड़ रहा हूं।”
धार्मिक शिक्षा न देकर कमजोर कर रहे हैं
शंकराचार्य का कहना है कि हम अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा न देकर कमजोर कर रहे हैं और उनसे उम्मीद कर रहे हैं कि जब धर्म की बात हो तो वह अपनी बात रखे। उन्होंने कहा कि अगर हम अपने बच्चों को यह बताएंगे ही नहीं कि हमारा धर्म क्या है, तो वे उसके लिए खड़ा कैसे रहेगा, उसके लिए तर्क कैसे दे पाएगा।
भारतीय संविधान की धारा 28(1) क्या है?
धारा 28(1) विशेष रूप से शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षण से संबंधित है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थानों में धर्म संबंधित शिक्षा नहीं दी जाए। धारा 28(1) के अनुसार: “किसी भी शैक्षिक संस्थान को जो सरकारी सहायता प्राप्त करती है, उस संस्थान में किसी भी धर्म, पंथ, जाति या भाषा के धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ाया जा सकता है।” इसका उद्देश्य सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान बनाए रखना है और धार्मिक भेदभाव को रोकना है।
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