Who Is Siyaram Baba: कलयुग के हनुमान की कहानी
हनुमान जी के महान भक्त और मां नर्मदा की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले सियाराम बाबा (Siyaram Baba) का नाम हमेशा श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक के रूप में लिया जाएगा। उनकी तपस्या, त्याग और समाजसेवा ने उन्हें ‘कलयुग का हनुमान’ बना दिया। 94 साल की आयु में, उन्होंने मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के तेली भट्टयान आश्रम में अपने जीवन की अंतिम सांस ली।
इस लेख में, हम बाबा के अद्भुत जीवन, उनकी कठिन तपस्या, समाजसेवा, और आध्यात्मिक यात्रा के बारे में विस्तार से जानेंगे।
सियाराम बाबा का परिचय (Siyaram Baba Biography)
सियाराम बाबा का जन्म गुजरात के काठियावाड़ में हुआ था। उनकी शिक्षा 11वीं तक मुंबई में हुई। लेकिन बाल्यकाल से ही उनमें आध्यात्मिकता की झलक दिखने लगी थी। पढ़ाई छोड़ने के बाद, उन्होंने अपने गुरु के साथ भारतभर में तीर्थ यात्राएं कीं। उनका अधिकांश समय भगवान हनुमान और मां नर्मदा की भक्ति में बीता।
बाबा ने अपने जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर संपूर्ण ध्यान और साधना पर जोर दिया।
भारत भ्रमण और मां नर्मदा की सेवा
सियाराम बाबा ने 1950 के दशक में आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत की।
- उन्होंने भारत के विभिन्न तीर्थ स्थलों की यात्रा की, जिनमें से मानसरोवर यात्रा प्रमुख है।
- यात्रा के दौरान, बाबा मां नर्मदा के प्रति आकर्षित हुए और नर्मदा परिक्रमा करते हुए खरगोन जिले के तेली भट्टयान गांव पहुंचे।
यहां, उन्होंने नर्मदा नदी के किनारे स्थित एक बरगद के पेड़ के नीचे तपस्या आरंभ की।
12 साल की कठिन तपस्या
सियाराम बाबा की तपस्या मानव क्षमता की सीमाओं को पार करने वाली थी।
- उन्होंने 12 साल तक एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की।
- इस दौरान, वे मौन व्रत धारण किए रहे।
- उनका भोजन केवल नीम के 12 पत्तों तक सीमित था।
यह तपस्या इतनी कठिन थी कि इसे देखकर लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। तपस्या समाप्त होने पर, उनके मुख से पहला शब्द ‘सियाराम’ निकला। तभी से लोग उन्हें इसी नाम से जानने लगे।
जीवनभर की सादगी और समाजसेवा
बाबा ने अपना संपूर्ण जीवन एक लंगोट में व्यतीत किया। उनका मानना था कि भगवान की शक्ति के साथ सांसारिक चीजों की जरूरत नहीं होती।
- वे किसी से अधिक धन स्वीकार नहीं करते थे। केवल 10 रुपये का दान लेते थे।
- इसी धन से उन्होंने नर्मदा घाटों का निर्माण और अन्य समाजसेवा कार्य किए।
बाबा पहले एक झोपड़ी में रहते थे। बाद में, ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा करके उनके लिए आश्रम का निर्माण कराया।
कलयुग के हनुमान क्यों माने गए सियाराम बाबा?
बाबा हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। वे दिन-रात श्री राम का नाम जपते और रामचरितमानस का पाठ करते थे।
- उनका जीवन पूरी तरह हनुमान जी के आदर्शों पर आधारित था।
- उन्होंने आत्म-संयम और भक्ति के जरिए भौतिक इच्छाओं को त्याग दिया।
- ग्रामीणों के अनुसार, बाबा में कई सिद्धियां थीं, जिनसे उनके आशीर्वाद लोगों के लिए वरदान बन जाते थे।
मोक्षदा एकादशी पर देह त्याग
11 दिसंबर 2024 को मोक्षदा एकादशी के पवित्र दिन, बाबा ने अपनी देह त्याग दी।
- इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि बाबा पहली बार इसी दिन तेली भट्टयान आए थे।
- उनके जीवन का यह संयोग, उनकी आध्यात्मिकता और उनके भगवान से जुड़े होने का प्रमाण है।
उनकी भक्ति और समाजसेवा की गाथा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर रहेगी।
सियाराम बाबा के बारे में अन्य तथ्य
- बाबा का असली नाम: किसी को ज्ञात नहीं है।
- भक्ति की शक्ति: वे नर्मदा नदी को मां मानते थे और घाटों की सफाई और निर्माण में सक्रिय योगदान देते थे।
- जीवनशैली: उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन अपनाया और भौतिक चीजों से हमेशा दूर रहे।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
1. सियाराम बाबा कौन थे?
सियाराम बाबा गुजरात के काठियावाड़ के रहने वाले संत थे। वे हनुमान जी के अनन्य भक्त थे और मां नर्मदा की सेवा के लिए प्रसिद्ध थे।
2. सियाराम बाबा को ‘कलयुग का हनुमान’ क्यों कहा जाता है?
उनकी कठिन तपस्या, हनुमान जी की भक्ति, और समाजसेवा के कारण उन्हें ‘कलयुग का हनुमान’ कहा गया।
3. सियाराम बाबा ने तपस्या के दौरान क्या खाया?
उन्होंने 12 वर्षों तक सिर्फ नीम के 12 पत्ते खाकर जीवन बिताया।
4. बाबा दान में केवल 10 रुपये ही क्यों लेते थे?
बाबा का मानना था कि जरूरत से ज्यादा धन लोभ और मोह बढ़ाता है। वे अतिरिक्त धन लौटा देते थे।
5. सियाराम बाबा की अंतिम यात्रा कब हुई?
11 दिसंबर 2024 को मोक्षदा एकादशी के दिन उन्होंने अपनी देह त्याग दी।
यह लेख बाबा की भक्ति, तपस्या और समाजसेवा को नमन करता है। उनका जीवन सिखाता है कि सादगी, भक्ति, और त्याग से जीवन को सही दिशा दी जा सकती है।
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