Success Story: गांव में लोग कहते थे निकम्मा, फिर खोल लिया 2 करोड़ का कारोबार! जानिए सफलता का राज
नई दिल्ली: हरिओम नौटियाल ने सबको गलत साबित कर दिया है। जब उन्होंने शहर की नौकरी छोड़कर अपने गांव लौटने का फैसला किया, तो लोगों ने उन्हें ‘निकम्मा’ और ‘पागल’ कहकर अपमानित किया। लेकिन, उन्होंने हार मानने के बजाय अपने सपनों का पीछा किया और आज वे सालाना 2 करोड़ रुपये कमाने वाले डेयरी व्यवसायी हैं। इस सफर में उन्होंने 500 लोगों को रोजगार भी दिया है। हरिओम देहरादून के निवासी हैं और उनके व्यवसाय का नाम ‘धन्य धेनु’ है। आइए, जानते हैं हरिओम की सफलता की पूरी कहानी।
शहर छोड़ने के बाद मिली आलोचना
हरिओम ने जब शहर की नौकरी छोड़कर गांव लौटने का निर्णय लिया, तो उन्हें स्थानीय लोगों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। गांव वालों ने उन्हें ‘निकम्मा’ और ‘पागल’ कहना शुरू कर दिया। लोगों ने बच्चों को भी चेतावनी दी कि अगर पढ़ाई नहीं की तो हरिओम जैसे बन जाओगे। इन आलोचनाओं से बचने के लिए हरिओम ने किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में जाना पसंद नहीं किया। उन्होंने अपने घर के पास एक गौशाला बनाई और गाय और उसके बछड़े के साथ समय बिताना शुरू किया। यहीं से उन्हें डेयरी फार्मिंग का विचार आया। हालांकि, गांव वालों ने उनका मजाक उड़ाया, लेकिन हरिओम ने हार मानने का इरादा नहीं किया।
10 गायों से शुरू हुआ सफर
हरिओम ने अपने व्यवसाय की शुरुआत 10 गायों से की। पहले कुछ साल कठिन थे। दूध की अधिकता और खरीदार की कमी के कारण उन्हें कई बार मुफ्त में दूध देना पड़ा। अच्छे दिनों में भी उन्हें केवल 9 रुपये ही मिलते थे। गांववाले मुफ्त में दूध तो ले लेते थे लेकिन उनका मजाक उड़ाना नहीं छोड़ते थे। फिर भी, हरिओम ने लगातार मेहनत की। धीरे-धीरे, उन्हें स्थानीय महिलाओं और अन्य डेयरी किसानों का समर्थन मिलने लगा। 2016 तक उन्होंने एक दूध संग्रह केंद्र स्थापित कर लिया और सरकारी सब्सिडी भी मिलने लगी। उन्होंने विशेष रूप से अनुसूचित जाति की महिलाओं और विधवाओं को प्रोत्साहित किया।
गुणवत्ता पर ध्यान और ग्राहकों का विश्वास
हरिओम ने अपने दूध की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान दिया। उन्होंने जैविक चारा इस्तेमाल किया और ग्राहकों को मुफ्त में लैक्टोमीटर भी दिए। इससे लोगों का विश्वास जीतने में उन्हें सफलता मिली। आज, हरिओम देहरादून और ऋषिकेश में रोजाना 250 लीटर दूध बेचते हैं। उनके वेंचर ‘धन्य धेनु’ के कई ग्राहक पिछले नौ सालों से उनकी सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं। वे ताजा और शुद्ध दूध पाने के लिए हरिओम के दूध को ही प्राथमिकता देते हैं, यहां तक कि दिल्ली से आने पर भी उनके बच्चे हरिओम का दूध ही लाते हैं।
2 करोड़ रुपये सालाना की कमाई
दूध के अलावा, हरिओम मावा, आइसक्रीम, रबड़ी, फालूदा और अचार भी बनाते हैं। उनके उत्पाद स्थानीय बाजारों और व्यापार मेलों में भी बिकते हैं। आज उनका व्यवसाय 2 करोड़ रुपये सालाना का हो गया है। हरिओम की सफलता ने उनके समुदाय की तस्वीर बदल दी है। वे 15 गांवों के 500 लोगों को रोजगार देते हैं। उनकी कहानी अब गांववालों के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है।
हरिओम की यह सफलता की कहानी हमें सिखाती है कि लगन और मेहनत से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।
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