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कौन हैं Sant Mavji Maharaj, जिनकी 300 साल पहले की गई भविष्यवाणी सच हो रही है, PM Modi ने जिक्र किया

Sant Mavji Maharaj
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कौन हैं Sant Mavji Maharaj, जिनकी 300 साल पहले की गई भविष्यवाणी सच हो रही है, PM Modi ने जिक्र किया | Sant Mavji Maharaj Kon Hai

डूंगरपुर. विज्ञान की प्रगति ने आज विश्व को चकित कर दिया है। विज्ञान के दम पर मनुष्य चंद्रमा और मंगल ग्रह तक पहुंच गया है, लेकिन भारतीय संतों-महात्माओं की दिव्य शक्तियों की कोई तुलना नहीं है। आज मनुष्य जिन हवाई जहाजों और उपग्रहों की सहायता से आकाश और अंतरिक्ष में भ्रमण कर रहा है उनकी कल्पना 300 वर्ष पूर्व संत मावजी महाराज ने की थी। बेणेश्वर धाम को पवित्र स्थान बनाने वाले संत मावजी ने कपड़े पर उपग्रहों और विमानों के चित्र उकेरे थे, जो वर्तमान में निर्मित उपकरणों के बिल्कुल समान हैं।

मावजी महाराज ने लगभग 300 साल पहले विभिन्न गीतों और दोहों के माध्यम से भविष्यवाणी की थी, उन्हें आगमवाणी कहा जाता है। मावजी महाराज के अनुयायी, विशेषकर साद समुदाय के लोग आज भी उनकी आगमनमणि को भजनों के रूप में गाते हैं। शेषपुर के हरिमंदिर में सुरक्षित रखी गई क्लॉथ-बोर्ड पेंटिंग्स (कपड़े पर रंगों से बनाई गई पेंटिंग) पर बनी उपग्रहों और विमानों की आकृतियां और इस चित्र के नीचे लिखी इबारत ‘विज्ञान शास्त्र विधि ने आकाश लगाएगा सैटेलाइट एबोड मई विचार’ करने पर मजबूर करती है। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र उपाध्याय कहते हैं कि इतिहासकार महेशचंद्र पुरोहित ने उन तस्वीरों और तस्वीर के नीचे लिखे संदेश को हूबहू पेश किया है. रवींद्र डी. पंड्या ने अपनी पुस्तक ‘श्री मावजी जीवन दर्पण में झांकती श्री कृष्ण लीला’ में शेषपुर गांव के हरि मंदिर के वस्त्रों, पैनलों और चित्रों की तस्वीरें भी प्रकाशित की हैं। इसकी पुष्टि रवींद्र डी. पंड्या की किताब में दी गई तस्वीर और महेशचंद्र पुरोहित द्वारा खींची गई तस्वीर के मिलान से होती है.

उस जमाने में मावजी महाराज ने कागज पर लाक्षा (लाख) की स्याही और बांस की कलम से 72 लाख 66 हजार भविष्यवाणियों को हस्तलिपि में लिखा था। वागड़ी भाषा में लिखी गई यह हस्तलिपियां आज भी साबला (डूंगरपुर) स्थित मावजी के जन्म स्थान (वर्तमान में मंदिर) में सहज कर रखी गई हैं। 

मावजी का जन्म संवत् 1784 में हुआ था

मावजी महाराज का जन्म भगवान श्री कृष्ण के अवतार के रूप में संवत् 1784 माघ सुदी एकादशी सोमवार को वागड़ क्षेत्र की पवित्र एवं पवित्र भूमि साबला धर्म नगरी में हुआ था। दलम ऋषि और केसर बाण की कोख से जन्मे मावजी बचपन से ही आध्यात्मिक थे। आम बच्चों की तरह उन्हें खेल-कूद या गाय-बकरी चराने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वे सोम-माही के संगम बेनके (बेणेश्वर) जाते थे और वहां शान्त एवं शांत वातावरण में बैठकर ध्यान-मग्न रहते थे। प्रतिभा के धनी संत मावजी ने अपने पवित्र स्थान बेणेश्वरधाम में रास लीलाएं कीं। वह श्री कृष्ण के परम भक्त, भविष्यवक्ता, ज्योतिषी, साहित्यकार और खगोलशास्त्री थे। अपने 31 वर्ष के छोटे से जीवनकाल में उन्होंने पाँच चौपड़े लिखे जो आज भी उपलब्ध हैं। इन चौपड़ों में भविष्यवाणियों के साथ-साथ विज्ञान, ज्योतिष, साहित्य, संगीत के साथ-साथ अर्थशास्त्र की भी सटीक जानकारी होती है।

राष्ट्रीय धरोहर से कम नहीं हैं चौपड़े

मावजी रचित सामसागर, पे्रम सागर, रतन सागर, अनन्त सागर व मेघ सागर साबला, पूंजपुर, शेषपुर झल्लारा व बांसवाड़ा में अलग अलग स्थानों पर सुरक्षित हैं। भक्तों के मुताबिक पांचवां अनन्त सागर चौपड़ा बिटिश काल के समय अंग्रेज अपने साथ ले गए। बताया जा रहा कि इस चौपड़े में विज्ञान की अद्भुत भविष्यवाणियां हैं।

ऐसे समझेंगे इस तस्वीर को

मावजी महाराज ने आज से दो सौ वर्ष पूर्व चित्रों के माध्यम से भविष्य की तस्वीर भी दिखा दी थी। चित्र को ठीक से देखने पर पता चलता है कि बायें भाग में गोल डिस्क जैसी आकृति वर्तमान पवन चक्की है। बीच में एक आदमी बैठा है.

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अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि शख्स के हाथ में एक चूहा है. सामने एक कंप्यूटर और कीबोर्ड है. रॉकेट, मिसाइलें, किले और बहुत कुछ हैं। नीचे दिखाया गया अंतरिक्ष यान का चित्र वर्तमान उपग्रह है। अगर हम दोनों तरफ दो हल्के हरे रंग के बिंदुओं को देखें तो पता चलता है कि लोग दो अलग-अलग दिशाओं में फोन पर बात कर रहे हैं।

मावजी महाराज की बनाई वह तस्वीर जिसमें आज की स्थिति स्पष्ट होती है।

अलग-अलग है मान्यतामान्यता है कि मावजी महाराज की ओर से भविष्यवाणी वाले तीन चोपड़े लिखे थे। इनमें से एक हरि मंदिर में सुरक्षित है। दूसरा यहां बने हुए आबू दर्रा के भीतर है, जबकि तीसरा चोपड़ा अंग्रेज यहां से टोक्यो (जापान) लेकर गए थे। वहीं से वायुयान जैसे अविष्कारों को नई दिशा मिली। वहीं कुछ लोगों की मान्यता है कि इसके अलावा एक चोपड़ा शेषपुर मंदिर (झल्लारा, उदयपुर) और एक बांसवाड़ा में भी रखा हुआ है। इन चोपड़ों पर आज भी अध्ययन कार्य जारी है।

माव परंपरा का आगाज

वेणेश्वर धाम के वर्तमान पीठाधीश्वर अच्युतानंद महाराज के अनुसार विक्रम संवत 1784 में मावजी महाराज ने वेणेश्वर में गद्दी स्थापित कर माव परंपरा की शुरुआत की। यहां पांच वर्ष बिताने के बाद मावजी 1801 में धूलागढ़ में रुके थे। उन्होंने कहा था कि इस क्षेत्र का आदिवासी समाज शासन करेगा।

समय बदलेगा और वेणेश्वर का जल बहुत उपयोगी हो जायेगा। अब तक मावजी महाराज की सभी भविष्यवाणियाँ सत्य रही हैं। बदलते दौर में बची हुई बातें भी पूरी होंगी। वागड़ क्षेत्र के अलावा मध्य प्रदेश और गुजरात में भी माव भक्तों की कमी नहीं है.

मावजी महाराज की बहुचर्चित भविष्यवाणियां

डोरिये दिवा बरेंगा- डोरी से दीपक जलेंगे
(बिजली के तारों से विद्युत बल्ब जलना)
वायरे वात थायेगा: हवा से बातें होंगी
(मोबाइल से चलते फिरते बात हो रही है)
परिये पाणी वेसाये: परी (तरल पदार्थ का छोटा मापक) से पानी बिकेगा
(वर्तमान में छोटी-छोटी बोतलों में पानी बिक रहा है)
गऊं चोखा गणमा मले – गेहूं चावल गिनकर मिलेंगे
(खाद्यान्न की कीमतें बढ़ चुकी हैं)
तरावे तम्बु तणासे – तालाब में तम्बू लगेंगे
(अकाल की समस्या साल-दर-साल बढ़ रही है।)
बरद ने सर से भार उतरसे – बैल पर से भार कम होगा
(अब खेती में ट्रैक्टर सहित अन्य उपकरणों का उपयोग बढ़ा)
खारा समन्दर मीठडा होसे – खारा समुद्र मीठा होगा
(समुद्र के पानी को फिल्टर कर उपयोग करना शुरू हो चुका है।)
वऊ-बेटी काम भारे, ने सासु पिसणा पीसेगा – बहु-बेटियां काम बताएंगी और सास चक्की पिसेगी
(बुजुर्ग सास-ससुर पर अत्याचार की घटनाएं आए दिन सामने आती हैं)
ऊंच नू नीच थासे नीच नूं ऊंच थासे – जो ऊंचे हैं वो नीचे होंगे और निम्न हैं वो उच्च होंगे।
(वर्ण व्यवस्था की स्थितियां पहले जैसी नहीं रही। अब सभी को प्रगति के समान अवसर हैं)
हिन्दू-मुसलमान एक होसे, एक थाली में जमण जीमासे – हिन्दू मुस्लिम एक होंगे, एक थाली में खाना खाएंगे।
(सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ा है)
पर्वत गरी ने पाणी थासे – पर्वत पिघल कर पानी होगा
(ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिम ग्लेशियर पिघल रहे हैं।)
पणी रे मई थी लाय उपजसे- (पानी में से आग निकलेगी)
(दुनिया में कई जगह समंदर के बीच ज्वालामुखी हैं)
सूना नगरे बाजार लक्ष्मी लूट से लुकतणी – बीच बाजार में लक्ष्मी की लूट होगी।
(दिनदहाड़े लूटपाट की घटनाएं दिनों दिन बढ़ी हैं।)
घेर-घेर घोडी बंदाशे – घर-घर घोड़े बंधेंगे
(पूर्व में घोड़े आवागमन का साधन थे, आज हर घर में वाहन हैं।)

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