‘खिलाफत ही एकमात्र समाधान’: जर्मनी में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने की ‘इस्लामिक शासन’ की मांग, हैम्बर्ग की सड़कों पर ‘अल्लाहु अकबर’ की गूंज
Demand to make Germany an Islamic Caliphate: यूरोप से लेकर अमेरिका तक की मीडिया में या तो भारत की चर्चा नहीं होती और अगर होती है तो उसे अहंकारी और श्रेष्ठ दिखाने के लिए। हालांकि इस बार भारत में हो रहे चुनावों की खूब चर्चा हो रही है, लेकिन ये लोगों को ये बताने के लिए है कि बीजेपी कितनी ‘अंध हिंदू राष्ट्रवादी’ है और प्रधानमंत्री मोदी और हिटलर जैसी कितनी बड़ी ‘फ़ासिस्ट’ है.
लगभग हर रिपोर्ट और हर विश्लेषण का निष्कर्ष यही है कि भारत के गरीब मुसलमान मोदी के जुल्म और अत्याचार के सामने पूरी तरह बेबस हैं। लाखों यहूदियों का नरसंहार करने वाले हिटलर के देश जर्मनी के इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में इन दिनों इस तरह का ज़हर चरम पर है।
भारत के मुसलमानों की असीम पीड़ा से अधमरे हुए जा रहे जर्मनी के यही, परम ज्ञानी मीडिया समीक्षक, 29 अप्रैल से लेकिन गुहार लगा रहे हैं कि गाज़ा पट्टी के आतंकवादी संगठन ‘हमास’ का समर्थन करने वाले मुस्लिम प्रदर्शनों पर क़ानूनी प्रतिबंध लगना चाहिए। जर्मनी भी ‘हमास’ को एक आतंकवादी संगठन मानता है।
शनिवार 27 अप्रैल को जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में हुए उग्र प्रदर्शन ने इसकी पुष्टि भी कर दी है. इसमें नारे लगाए जा रहे थे, ‘खिलाफत ही समाधान है’, ‘अल्लाह हू अकबर’
„So gehorche nicht den Lügnern!“
Eindrücke aus der heutigen Demonstration in Hamburg pic.twitter.com/N7pRpcSgYg
— Muslim Interaktiv (@MInteraktiv) April 27, 2024
‘इस्लामिक स्टेट (IS)’ की 10वीं वर्षगांठ: ‘खिलाफत ही समाधान है’ यानी कुख्यात इराकी आतंकवादी अबू बक्र अल बगदादी की खिलाफत को पुनर्जीवित करना. 10 साल पहले जून 2014 में उसने इराक और सीरिया के एक बड़े हिस्से को अपना ‘खिलाफत’ (ईश्वर का साम्राज्य) घोषित कर दिया था. उसने खुद को पैगंबर मोहम्मद का उत्तराधिकारी होने का दावा किया था. इसका ‘खिलाफत’, जिसे ‘इस्लामिक स्टेट (आईएस)’ के नाम से भी जाना जाता है और जो अब समाप्त हो चुका है, लाखों लोगों की मौत और शरणार्थियों का कारण बना। उस समय के कई शरणार्थी आज भी जर्मनी में रहते हैं
यानि कि इस्लामिक स्टेट (आईएस) के गठन की 10वीं वर्षगांठ से ठीक पहले हैम्बर्ग में एक हजार से ज्यादा मुस्लिम प्रदर्शनकारी असल में कह रहे थे कि ईसाई जर्मनी को इस्लामिक राज्य बनना चाहिए। इस प्रदर्शन का आयोजन ‘मुस्लिम इंटरएक्टिव’ नाम के इस्लामिक संगठन ने किया था. तख्तियों और बैनरों पर जर्मनी को गलत तरीके से ‘नैतिक तानाशाही’ वाला देश बताया गया।
जर्मन अधिकारी स्तब्ध रह गए: हालाँकि प्रदर्शन की विधिवत अनुमति थी। लेकिन उसमें लगे नारे और तख्तियों-बैनरों पर लिखी बातों ने जर्मन अधिकारियों को चौंका दिया. हैम्बर्ग शहर के पुलिस प्रमुख फॉक श्नाबल ने जर्मन रेडियो-टीवी नेटवर्क एआरडी की स्थानीय शाखा एनडीआर से बातचीत में कहा कि प्रदर्शन के आयोजक इस्लामिक संगठन मुस्लिम इंटरएक्टिव पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. तभी सोशल मीडिया पर उनके नफरत भरे प्रचार पर लगाम लगाई जा सकेगी. श्नाबल के अनुसार, इन प्रचारों को रोकना बहुत ज़रूरी है, अन्यथा ‘मुस्लिम चरमपंथ का ख़तरा सर्वव्यापी हो जाएगा।’ प्रचार यह घृणित धारणा देता है कि जर्मनी के तथाकथित ‘मौलिक अधिकार मुसलमानों के लिए नहीं हैं’, इसलिए ‘खिलाफत’ की आवश्यकता है।
जर्मनी की आंतरिक ख़ुफ़िया सेवा ‘संवैधानिक रक्षा कार्यालय’ ने अपने एक आकलन में ‘मुस्लिम इंटरैक्टिव’ को ‘पूरी तरह चरमपंथी’ होने का दर्जा दिया है. वह अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक संगठन ‘हिज़्ब उत-तहरीर’ से जुड़ा है। यह संगठन 2003 से जर्मनी में प्रतिबंधित है। जर्मनी की आंतरिक खुफिया सेवा इसे एक ऐसा संगठन बताती है जो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को खारिज करता है और पूरी दुनिया को खिलाफत बनाना चाहता है।
खलीफा क्या है: इजरायल से आकर जर्मनी में बसने वाले अरब इस्लामवादी अहमद मंसूर ने एक जर्मन मीडिया समूह को बताया कि ‘खिलाफत शासन की एक प्रणाली है जिसमें इस्लामी न्याय संहिता ‘शरिया’ को एक हठधर्मिता बना दिया गया है। जिसके अनुसार सभी को कुरान और सुन्नत के नियमों का पालन करना होगा। राज्य सत्ता जनता की देन नहीं है। विधर्मियों को निम्न गुणवत्ता का माना जाता है। इस्लाम के विस्तार के लिए युद्ध लड़े जाते हैं। लोकतांत्रिक मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाता है।
अहमद मंसूर का कहना है कि ‘मुस्लिम इंटरैक्टिव’ जैसे संगठन बाहरी तौर पर खुद को सलाफी प्रचारकों की तुलना में अधिक आधुनिक और अधिक उदारवादी दिखाते हैं, लेकिन वे जर्मनी में मुसलमानों के खिलाफ कथित भेदभाव का फायदा उठाते हैं और उन्हें भड़काते हैं। वे स्थानीय समाज के साथ बातचीत को इस्लाम से दूर होने और अपनी पहचान खोने के खतरे के रूप में देखते हैं।
बहुत पहले क्यों नहीं लगाया गया प्रतिबंध: 27 अप्रैल को हैम्बर्ग में जो कुछ हुआ, उसके बारे में जर्मनी की आंतरिक मंत्री नैन्सी फेसर ने कहा कि यह ‘असहनीय’ था। एक रोडियो साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि ‘हमास’ के पक्ष में किसी भी प्रचार की अनुमति नहीं दी जा सकती। ‘जर्मन सड़कों पर यहूदियों को निशाना बनाकर नफरत भरे नारे और हिंसा के आह्वान की अनुमति नहीं दी जा सकती।’ इस पर जर्मनी की महिला इस्लामोलॉजिस्ट क्लाउडिया डैनश्के ने टिप्पणी की, ‘मेरे लिए यह एक अबूझ पहेली है कि मुस्लिम इंटरएक्टिव पर बहुत पहले प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया गया?
उन्होंने शर्म के सारे पर्दे बहुत पहले ही हटा दिए हैं. ‘हिज़्ब उत-तहरीर’ पर पहले से लगे प्रतिबंध को देखते हुए यह स्पष्ट नहीं है कि गृह मंत्रालय अब भी क्या जांच कर रहा है?
Hamburg am Samstagnachmittag: Hunderte Islamisten demonstrierten für ein Kalifat. Aufgerufen hatte die Gruppierung Muslim Interaktiv, die vom Verfassungsschutz beobachtet wird.
Alle Infos gibt’s hier: https://t.co/23fueJng1J pic.twitter.com/6bk9SAUdxC— NIUS (@niusde_) April 27, 2024
हालाँकि 2003 से जर्मनी में अल बगदादी के खिलाफत आंदोलन जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन ‘मुस्लिम इंटरएक्टिव’ जैसे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म समय के साथ अपनी सक्रियता बढ़ा रहे हैं। जर्मन सरकार को सलाह देने वाली ‘जर्मन इस्लाम कॉन्फ्रेंस’ के सदस्य तुर्की मूल के एरिन ग्वेर्सिन का कहना है कि ‘हमास’ पर इजरायली हमले के बाद से यह सक्रियता तेज हो गई है. जो लोग ऐसा कर रहे हैं वो 2015 से आए शरणार्थी नहीं हैं, ये वो लोग हैं जो जर्मनी में पैदा हुए हैं और यहां के समाज का हिस्सा हैं. गृह मंत्री उनके प्रति कठोर व्यवहार करने की बात करते हैं, लेकिन सवाल यह है कि इस कठोरता के लिए उन्होंने अब तक क्या किया है?
संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत की टिप्पणी: यहां तक कि जर्मनी में संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत अहमद अल अत्तार ने हैम्बर्ग में प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा, जिन लोगों का घर जर्मनी है, वे जर्मनी विरोधी हो गए हैं। लेकिन, यह राजनीतिक इस्लाम के लिए विशिष्ट है। यह प्रतिक्रिया एक ऐसे देश के राजदूत की ओर से आई है जो खुद एक अरब मुस्लिम है और यह बात उन लोगों के बारे में कह रहे हैं जो अरब फिलिस्तीनियों के आतंकवादी संगठन हमास के समर्थन में जर्मनी की सड़कों पर उतरे थे और उसे इस्लामिक खलीफा बनाने के नारे लगा रहे थे। आवेदन कर रहे थे.
जर्मनी के न्याय मंत्री मार्को बुशमैन ने भी टिप्पणी की कि अगर भारत में कोई मंत्री पाकिस्तान के बहाने किसी कथित अल्पसंख्यक को यही बात कह दे तो न केवल देश के सभी वामपंथी बल्कि यूरोप और अमेरिका का पूरा पश्चिमी मीडिया उस पर टूट पड़ेगा. लेकिन जर्मन न्याय मंत्री की इस सलाह पर जर्मन मीडिया में कोई आलोचनात्मक टिप्पणी देखने या सुनने को नहीं मिली.
अमेरिका में विरोध-प्रदर्शनों की बाढ़: हमास के समर्थन में अमेरिका में विरोध-प्रदर्शनों की बाढ़ आ गई है. वहां के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्र अपनी पढ़ाई छोड़कर इन आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे हैं. आए दिन पुलिस और उनके बीच झड़प हो रही है. वहां भी हमास समर्थकों से कहा जाता है कि उन्हें इससे इतना प्यार है तो वे गाजा जाकर इजराइल से क्यों नहीं लड़ते? तुम यहाँ शोर क्यों मचाते हो?
पीएम को हिटलर साबित करने पर तुले: भारत में भारतीय ही देश के प्रधानमंत्री को हिटलर साबित करने पर तुले हुए हैं, वो भूल रहे हैं कि ऐसी तुलनाओं के जरिए वो हिटलर को एक मासूम साधारण आदमी साबित कर रहे हैं। हिटलर ने लगभग पूरे यूरोप पर कब्ज़ा कर लिया था। अपने 15 वर्षों के खूनी शासनकाल के दौरान कम से कम 3 करोड़ लोगों की यातनापूर्ण मौतों के लिए जिम्मेदार था। भारत के शुद्ध शाकाहारी प्रधानमंत्री को किसी देश पर कब्जे की बात तो दूर, एक साधारण पक्षी की यातनापूर्ण मौत के लिए भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
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